खैरथल-तिजारा व कोटपूतली-बहरोड़ की जनता को उम्मीद थी कि विधानसभा चुनाव के बाद उनके जिलों में विकास की गंगा बहेगी लेकिन सरकार का खजाना खाली है। शुक्रवार को नए कामों के टेंडर करने व पुराने कार्यों को फिलहाल रोकने के जैसे ही आदेश सामने आए तो इससे लोगों को और झटका लग गया है। माना जा रहा है कि ये जिले अपने पैरों पर फिलहाल नहीं खड़े हो पाएंगे। नए कार्यालयों की स्थापना नहीं हो पाएगी। अधिकारियों व कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने, नई तैनाती करने का सपना भी धूमिल हो रहा है।
कांग्रेस की सरकार ने अगस्त में नए जिले बनाए। उसके एक माह के बाद ही करीब 15 विभागों की स्थापना कर दी। किराये के भवनों में कार्यालय खुलवाए गए। एक-दूसरे जिलों में तैनात अफसरों को इन विभागों की जिम्मेदारी दी गई। पहले ओएसडी लगाए गए और बाद कलक्टर व एसपी की तैनाती की गई। यानी विभाग बन गए लेकिन उनके अपने कार्यालय नहीं हैं। अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों के करीब 700 पद खाली हैं। इन पदों पर तैनाती करने के लिए सरकार को करोड़ों का बजट चाहिए जो अभी मिलना मुश्किल बताया जा रहा है। नए जिलों में नए प्रोजेक्ट के लिए अफसर रास्ता खोलते लेकिन टेंडर प्रक्रिया पर रोक लगा दी गई। एक्सपर्ट कहते हैं कि इन जिलों को पूरी तरह खड़ा होने में करीब 10 साल लगेंगे।
नगर निगम को मिला आराम…सफाई टेंडर नहीं करना होगा
नगर निगम विधानसभा चुनाव के दौरान सफाई टेंडर करने के लिए जोर लगा रहा था जबकि 8 माह से कुछ नहीं किया। अब सरकार ने नए टेंडरों पर रोक लगा दी। इससे विभाग के अफसरों व नेताओं को आराम मिला है। पुराने ठेकेदारों की भी मौज हो गई। कुछ पार्षद कहते हैं कि जिम्मेदार यही चाहते थे। यदि टेंडर करना उनकी मंशा होती तो 8 माह में हो गया होता। शहर की सफाई व्यवस्था दुरुस्त हो गई होती।
यूआईटी का नया कार्यालय फंसा
यूआईटी की ओर से प्रस्ताव तैयार किया गया था कि अंबेडकर नगर में 25 करोड़ की लागत से नया कार्यालय बनेगा। इसके लिए डिजाइन आदि बनवाए गए लेकिन बाद में जमीन का पेच फंस गया। अब इस कार्य के लिए टेंडर होता नहीं दिख रहा है।
यूआईटी की ओर से प्रस्ताव तैयार किया गया था कि अंबेडकर नगर में 25 करोड़ की लागत से नया कार्यालय बनेगा। इसके लिए डिजाइन आदि बनवाए गए लेकिन बाद में जमीन का पेच फंस गया। अब इस कार्य के लिए टेंडर होता नहीं दिख रहा है।