ग्रामीण परिवेश में 80 फीसदी महिलाएं चूल्हे पर लकड़ी से रोटी बनाती हैं। सरकार ने धुआं मुक्त ईधन के लिए गरीब तबके के लोगों को उज्ज्वला योजना से जोड़कर गैस सिलेंडर तो दे दिए, लेकिन उनकी रिफिलिंग का खर्चा भी वहन नहीं हो पाता। ऐसे में घरों में रखे सिलेंडर केवल शोभा बनकर रह गए। चूल्हा बनाने वाली महिला रवीना खान ने बताया कि महंगाई के दौर में घर का खर्चा तक नहीं चलता। घर में कई सदस्यों की रोटी, चाय आदि का काम गैस चूल्हे के भरोसे रहे तो हर महीने गैस सिलेंडर को भराने का खर्चा वहन नहीं हो पाता।
जमींदाराें में पशुओं और परिवार का भोजन गैस पर संभव नहीं होता महिला अनिता जाट आदि ने बताया कि जमींदादों में पशुओं और परिवार का भोजन गैस पर संभव नहीं होता। अगर गैस पर इन सभी कार्यों को किया जाए तो खर्चा वहन नहीं होता। इसलिए हाथ के बने चूल्हे, अंगीठी आदि ही उपयोग में लिए जाते हैं। पहाड़ की वादियों में रहने वाली महिला सुनीता शर्मा, नांगल सोहन आदि ने बताया कि जंगल से लकड़ी एकत्रित कर चूल्हे पर खाना बनाने का आनंद ही कुछ अलग है। इससे मिट्टी के तवे पर तैयार भोजन सेहतमंद रहता है। साथ ही महिलाओं की व्यस्ततम दिनचर्या से स्वास्थ्य सही बना रहता है।