अलवर. राजस्थान वीर सपूतों की भूमि है। राजस्थान के रजवाड़ों ने कई युद्ध लडकऱ इस भूमि को गौरवांवित किया है। राजस्थान के वीर योद्धाओं में सबसे शीर्ष पर महाराणा प्रताप का नाम आता है। कहा जाता है कि अकबर महाराणा प्रताप के नाम से कांपता था। लेकिन आज हम आपको राजस्थान के ऐसे वीर के बारे में बताने जा रहे हैं जिससे अकबर का दादा बाबर भी घबराता था। जिससे बाबर भी घबराता था, उस महान राजा का नाम था हसन खां मेवाती। हसन खां मेवाती अलवर राजधानी के राजा थे।
अमर शहीद राजा हसन खां मेवाती नाम की किताब लिखने वाले इतिहासकार सद्दीक मेवा लिखते हैं कि हसन खां मेवाती सोलहवीं शताब्दी के महान देश भक्त राजा थे। अकबरनामा में उस समय के जिन चार योद्धाओं का वर्णन है, उनमें से हसन खां मेवाती एक हैं। राजा हसन खां मेवाती ने कभी विदेशी अतिक्रमणकारियों के साथ कोई समझौता नहीं किया। उन्होंने देश की खातिर हिंदू राजाओं का साथ दिया था।
पानीपत की लड़ाई में बाबर का सामना किया हसन खां मेवाती ने 1526 में पानीपत की पहली लड़ाई में इब्राहिम लोदी का साथ दिया। उन्होंने विदेशी अतिक्रमणकारी बाबर के खिलाफ अपनी सेना उतार दी। इस युद्ध में बाबर ने मेवाती के पुत्र को बंधक बना लिया। इस युद्ध में लोदी हार गए, लेकिन मेवाती नहीं हारे, वे बाबर के खिलाफ लडऩे के लिए राणा सांगा के साथ मिल गए।
देशभक्ति की मिसाल थे मेवाती हसन खां मेवाती वतन परस्ती की मिसाल थे। हसन खां मेवाती भारत माता के वो सच्चे सपूत थे जिन्होंने बाबर को रोकने के लिए अपने राज्य की कुर्बानी तक दे दी। एक दिन मेवाती को बाबर का पैगाम मिला, उसमें बाबर ने मजहब की दुहाई देते हुए उससे मिलने का प्रस्ताव दिया। बाबर ने इसके साथ मेवाती को कई और लालच दिए, लेकिन मेवाती ने उनका पैगाम ठुकराकर देशभक्ति को चुना। इसके बाद बाबर ने धमकी देना शुरु किया, बाबर ने लिखा कि मैं तुम्हारे पुत्र को रिहा कर दूंगा, तुम मेरे से आकर मिलो, इसपर मेवाती ने जवाब दिया कि अब हमारी मुलाकात युद्ध के मैदान में होगी।
फिर हुई खानवा की लड़ाई खानवा की लड़ाई मेवाड़ के राणा सांगा और बाबर के बीच हुई। उस समय हसन खां मेवाती की देशभक्ति देशभर में प्रसिद्ध हो चुकी थी। हसन खां मेवाती ने इस लड़ाई में राणा सांगा का साथ दिया। 15 मार्च 1527 को हसन खां ने राणा सांगा के साथ मिलकर खानवा के मैदान में बाबर के साथ जमकर युद्ध किया। अचानक एक तीर राणा सांगा के सिर पर आ गया और वे हाथी से नीचे गिर पड़े, फिर सेना के पैर उखडऩे लगे तो सेनापति का झण्डा खुद राजा हसन खां मेवाती ने संभाल लिया और बाबर सेना को ललकारते हुए उनपर जोरदार हमला बोल दिया। राजा हसन खां मेवाती के 12 हजार घुड़सवार सिपाही बाबर की सेना पर टूट पड़े और उनपर भारी पड़ते दिखे, फिर अचानक एक तोप का गोला राजा हसन खां मेवाती के सीने पर आ लगा और मेवाती लड़ते लड़ते वीर गति को प्राप्त हो गए।
अब वापस याद कर रहे हसन खां मेवाती की वीरताभरी गाथा लोगों तक पहुंचाने के लिए अलवर में हसन खां मेवाती का पैनोरमा बनाया गया है। इसके बाहर उनकी घोड़े पर सवार एक प्रतिमा लगाई गई है। यह पैनोरमा 85 लाख की लागत से बना है।