गर्मियों के चलते हर तीन या चार दिन के अंतराल में तापमान अधिक होने की वजह से अधिक पानी पिलाया जाता है। भूजल स्तर भी कम हो गया है, जिसके कारण सब्जियों की फसल पर असर पड़ रहा है। कृषि पर्यवेक्षक अकबरपुर सुनीता वर्मा ने बताया कि लोकी, करेला, कद्दू, टिंडा, तरबूज, खरबूजे, तुरई आदि की खरपतवार प्रबंधन, निराई-गुड़ाई, कीट रोगों का नियंत्रण कर इन सब्जियों में अधिक पैदावार प्राप्त करने के लिए किसानों को सुझाव दिए जाते हैं। किसान मेहनत कर रहे हैं, जिससे अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त कर सके।
सिंचाई में परेशानी उमरैण क्षेत्र में लगातार गिरते भूजल के कारण गर्मी की फसलों को सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिल पाता है। जिससे ऐसी फसलों से कई किसान मुंह मोडने लगे हैं। पहले कभी उमरैण क्षेत्र में 50 फीसदी कद्दू वर्गीय फसल की खेती हुआ करती थी। किसानों के अनुसार अब लगभग 5% ही रह गई है। इसका कारण लगातार कद्दू वर्गीय फसल के लिए पानी की अधिक आवश्यकता रहती है, जिसमें पानी की कमी होने के कारण गर्मियों के सीजन में इस फसल पर असर पड़ता है और बगैर पानी के यह फसल होना असंभव है।
किसान गिर्राज यादव आदि का कहना है कि तरबूज, खरबूजे, टिंडा, ककड़ी जैसी फसल क्षेत्र में बहुत कम हो रही है। भूजल स्तर लगातार नीचे जाने के बाद कद्दू वर्गीय फसल उमरैण क्षेत्र में बहुत कम होने लगी है। करीब 5 साल पहले वे खुद खेतों से ट्राॅली भरकर कद्दू वर्गीय फसल को मंडी में बेचने जाता था, लेकिन अब फसल बुवाई करना बंद कर दी। क्षेत्र जयसमंद बांध के पास होते हुए भी पानी नहीं है।