उन्होंने बताया कि जानकारी के अनुसार अलीगढ के बंजारा व्यापारी को माता ने दर्शन दिए और इसके बाद बंजारा ने माता का मंदिर बनवाया। आज भी बंजारा व्यापारी का परिवार यहां दर्शनों के लिए आता तो कौड़ी ही चढ़ाता है। माता की प्रतिमा संगमरमर की है। माता के साथ-साथ चौसठ योगिनी में से जया और विजया भी यहां विराजमान है। यहां नवरात्र में भक्तों की भारी भीड़ रहती है।
माता का मेला वैशाख मास की पंचमी से एकादशी तक भरता है। सप्तमी की मध्यरात्रि को माता का जन्म बताया जाता है। इसलिए इस दिन विशेष श्रृंगार होता है। पुजारी ने बताया कि मंदिर में विशेष बात यह है कि अन्य देवी मंदिरों में माता देवी रूप में सिंह पर विराजमान है और शेर का मुंह दाई तरफ होता है लेकिन यहां पर माता के समीप शेर खड़ा हुआ है और उसका मुंह उत्तर की तरफ है जो कि शांति और प्रेम का प्रतीक है। मंदिर तक जाने के लिए 163 सीढ़ियां हैं। साथ ही वाहन से जाने की भी सुविधा है। यहां पर अलवर जिले के अलावा जयपुर, भरतपुर, नासिक, पुणे, यूपी सहित अन्य जगहों से भक्त दर्शनों के लिए आते हैं।