“बुड्ढा मर गया” नाटक में ग्रामीण पृष्ठभूमि में जमींदारी प्रथा, लालच और पारिवारिक विवाद की मनोरंजक कहानी को दिखाया गया। यह नाटक बंछा राम नाम के एक वृद्ध व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमता है, जो अपनी बगीची को जमींदार और अन्य लोगों से बचाने के लिए जी-जान से जुटा रहता है। जमींदार के पिता छकोरी, जो लालच में मरने के बाद भी अपनी बगीची नहीं छोड़ पाते और भूत बनकर पेड़ों के बीच भटकते रहते हैं, कहानी में हास्य का अनूठा रंग जोड़ते हैं।
नाटक में बंछा राम के पोते और उसकी पत्नी अपने स्वार्थ के लिए वृद्ध व्यक्ति को लंबे समय तक जीवित रखने की कोशिश करती हैं ताकि बगीची पर उनका अधिकार बना रहे। वहीं, दूसरी ओर, जमींदार नकोरी और उसका परिवार बगीची पर कब्जा जमाने की हर संभव कोशिश करता है। यह हास्य नाटक दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर बगीची किसके हाथ लगेगी। नाटक के बाद रंग संवाद भी हुआ जिसमें नाटक से संबंधित दर्शकों ने निर्देशक से सवाल जवाब किए।