पुलिस के पास वर्तमान में जितने वाहन हैं, उनसे सही मायनों में थानों में वाहनों की पूर्ति भी नहीं हो पा रही है। स्थिति ये है कि जिले के बड़े-बड़े थानों में भी बामुश्किल एक-एक वाहन हैं, जबकि यहां एक से अधिक वाहनों की आवश्यकता है। रही सही कसर आगजनी व तोडफ़ोड़ की घटनाओं ने पूरी कर दी है। जिले मेें हाल ही 2 अप्रेल को अलवर बंद के दौरान उपद्रवियों ने पुलिस के तीन वाहनों को आग लगा दी। इससे पुलिस बेड़े में वाहनों की कमी और बढ़ गई। इनके बदले नए वाहन पुलिस को नहीं मिले हैं।
बाइकों के भरोसे गश्त व्यवस्था जिले में पुलिस की गश्त व्यवस्था पूरी तरह बाइकों (सिग्मा) पर निर्भर है। कहने के लिए अलवर पुलिस के बेड़े में 29 बोलेरो, 42 जीप,2 जिप्सी, 5 टवेरा व 3 कार शामिल हैं, लेकिन सच्चाई ये है कि कार व टवेरा को छोड़ दें तो ज्यादातर वाहन पुराने व खस्ताहाल हैं, जिन्हें चालू हालत में रखने के लिए हर माह पुलिसकर्मियों को अपनी जेब से पैसा लगाना पड़ता है। जिले में थानों की संख्या पर गौर करें तो अलवर जिले में लगभग 38 थाने है। इसके अलावा पुलिस उपाधीक्षक, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, सहायक पुलिस अधीक्षक व पुलिस अधीक्षक आदि के पद भी सृजित हैं। इन सभी के लिए भी अलग-अलग वाहनों की आवश्यकता रहती है। ऐसे में थानों के हिस्से में बामुश्किल एक-एक वाहन आते हैं।
ज्यादातर वाहन उम्रदराज जिले में जहां एक ओर पुलिस वाहनों की कमी से जूझ रही है, वहीं दूसरी ओर पुलिस बेड़े में शामिल ज्यादातर वाहन कंडम की स्थिति में पहुंच गए हैं। नियमानुसार पुलिस बेड़े में शामिल जीप एवं बोलेरो के 8 साल या आठ लाख किलोमीटर चलने पर उसे नाकारा अथवा कंडम की श्रेणी में मान लिया जाता है। जबकि अलवर में पुलिस बेड़े में शामिल ज्यादातर वाहन इन दोनों शर्तों को पूरा कर चुके हैं। इसके बावजूद भी उन्हें सडक़ों पर दौड़ाया जा रहा है।