– भाजपा के पास पूर्ण बहुमत होने के बाद भी सभापति कांग्रेस की बनी, ऐसे में पार्षद नहीं खोल पा रहे पत्ते
नगर निगम की अब तक चली आ रही राजनीति से विधानसभा चुनाव में गर्माहट बढ़ गई है। भाजपा ने जहां तीन निर्दलीय पार्षदों को पार्टी में शामिल कर शक्ति प्रदर्शन करने की कोशिश की। वहीं अब कांग्रेस भी अपनी ताकत का अहसास कराने की तैयारी में है। वह भी कुछ पार्षदों का जोड़-तोड़ कर सकती है लेकिन दोनों ही राजनीतिक दलों के नेता असमंजस में हैं। उन्हें पूर्ण भरोसा नहीं हो पा रहा है कि उनकी पार्टियों के पार्षद उनके साथ कितना प्रतिशत हैं। उसका बड़ा कारण अलग-अलग हैं। क्योंकि भाजपा का बहुमत होने के बाद भी कांग्रेस की सभापति निगम में बनीं। इसके बाद कांग्रेस की सरकार के चलते भाजपा के मेयर कुर्सी पर बने हुए हैं। उन्हें हटाने के लिए कांग्रेस के पार्षदों ने पूरी ताकत झोंकी और वह पार्टी के ही नेताओं के खिलाफ उतर आए थे। ऐसे में शहर सीट पर पार्षदों की भूमिका इस बार अलग रंग ला सकती है।
इस तरह समझें पार्षदों का बटवारा
नगर निगम के 65 पार्षद हैं। कांग्रेस के अपने 18 पार्षद हैं। भाजपा के पाले में 27 पार्षद हैं। बाकी करीब 20 पार्षद निर्दलीय हैं। इनमें से करीब 12 पार्षदों ने कांग्रेस को समर्थन दिया हुआ है। कुछ पार्षद अब तक निर्दलीय ही मैदान में हैं। अब चुनाव शुरू हुआ तो तीन पार्षद टूटकर भाजपा खेमे में जा मिले। अब जोड़-तोड़ को बराकर करने के लिए कांग्रेस जुटी है। बताया जा रहा है कि चार से पांच पार्षदों को कांग्रेस कभी भी सदस्यता ग्रहण करवा सकती है। अभी ये साफ नहीं हो पाया है कि ये पार्षद भाजपा के हैं या फिर निर्दलीय।
नगर निगम की अब तक चली आ रही राजनीति से विधानसभा चुनाव में गर्माहट बढ़ गई है। भाजपा ने जहां तीन निर्दलीय पार्षदों को पार्टी में शामिल कर शक्ति प्रदर्शन करने की कोशिश की। वहीं अब कांग्रेस भी अपनी ताकत का अहसास कराने की तैयारी में है। वह भी कुछ पार्षदों का जोड़-तोड़ कर सकती है लेकिन दोनों ही राजनीतिक दलों के नेता असमंजस में हैं। उन्हें पूर्ण भरोसा नहीं हो पा रहा है कि उनकी पार्टियों के पार्षद उनके साथ कितना प्रतिशत हैं। उसका बड़ा कारण अलग-अलग हैं। क्योंकि भाजपा का बहुमत होने के बाद भी कांग्रेस की सभापति निगम में बनीं। इसके बाद कांग्रेस की सरकार के चलते भाजपा के मेयर कुर्सी पर बने हुए हैं। उन्हें हटाने के लिए कांग्रेस के पार्षदों ने पूरी ताकत झोंकी और वह पार्टी के ही नेताओं के खिलाफ उतर आए थे। ऐसे में शहर सीट पर पार्षदों की भूमिका इस बार अलग रंग ला सकती है।
इस तरह समझें पार्षदों का बटवारा
नगर निगम के 65 पार्षद हैं। कांग्रेस के अपने 18 पार्षद हैं। भाजपा के पाले में 27 पार्षद हैं। बाकी करीब 20 पार्षद निर्दलीय हैं। इनमें से करीब 12 पार्षदों ने कांग्रेस को समर्थन दिया हुआ है। कुछ पार्षद अब तक निर्दलीय ही मैदान में हैं। अब चुनाव शुरू हुआ तो तीन पार्षद टूटकर भाजपा खेमे में जा मिले। अब जोड़-तोड़ को बराकर करने के लिए कांग्रेस जुटी है। बताया जा रहा है कि चार से पांच पार्षदों को कांग्रेस कभी भी सदस्यता ग्रहण करवा सकती है। अभी ये साफ नहीं हो पाया है कि ये पार्षद भाजपा के हैं या फिर निर्दलीय।
इनसेट– कांग्रेस के पार्षद नहीं खोल रहे पत्ते
कांग्रेस के पार्षदों ने नगर निगम के मेयर को कुर्सी से हटाने के लिए दिन-रात एक कर दिया था लेकिन सफल नहीं हो पाए। पार्टी के नेताओं पर ही वह आरोप लगा रहे थे। इसको लेकर कई पार्षदों में नाराजगी है। बताया जा रहा है कि वह खुलकर अपने पत्ते सामने नहीं रख पा रहे हैं। चुनाव प्रचार में भी कई पार्षद नजर नहीं आ रहे हैं। उनकी नाराजगी से पार्टी को नुकसान हो सकता है। हालांकि पार्टी के नेताओं ने उन्हें मनाने की कोशिश की है। यही नहीं, पूर्व सभापति बीना गुप्ता की भी सदस्यता पार्टी ने बहाल की है ताकि पार्टी को फायदा मिल सके।
कांग्रेस के पार्षदों ने नगर निगम के मेयर को कुर्सी से हटाने के लिए दिन-रात एक कर दिया था लेकिन सफल नहीं हो पाए। पार्टी के नेताओं पर ही वह आरोप लगा रहे थे। इसको लेकर कई पार्षदों में नाराजगी है। बताया जा रहा है कि वह खुलकर अपने पत्ते सामने नहीं रख पा रहे हैं। चुनाव प्रचार में भी कई पार्षद नजर नहीं आ रहे हैं। उनकी नाराजगी से पार्टी को नुकसान हो सकता है। हालांकि पार्टी के नेताओं ने उन्हें मनाने की कोशिश की है। यही नहीं, पूर्व सभापति बीना गुप्ता की भी सदस्यता पार्टी ने बहाल की है ताकि पार्टी को फायदा मिल सके।
भाजपा को भी साथ न देने का अंदेशा नगर निगम में भाजपा के पास सर्वाधिक 27 पार्षद थे लेकिन सभापति उनका नहीं बन पाया। पूरा बहुमत होने के बाद भी भाजपा को शिकस्त मिली। कांग्रेस की बीना गुप्ता सभापति बन गई थीं। भाजपा के मेयर घनश्याम गुर्जर को कोर्ट के जरिए ये सीट मिली। डीएलबी ने इसके आदेश किए। ऐसे में भाजपा के सभी पार्षद पार्टी के साथ होंगे, इसका अंदेशा नेताओं का नजर आ रहा है। यदि सभी पार्षदों ने पार्टी का साथ नहीं दिया तो परिणाम पर इसका असर पड़ता तय है।