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अलवर

विधानसभा चुनाव माथे पर, व्यवस्थाएं नहीं उतरी ढांचे पर…वो कैसे, यह न्यूज पढ़े

सूबे में विधानसभा चुनाव सिर पर है। यह चुनाव हर पांच साल में होते रहे हैं, पर इस बार जिले इन चुनावों को लेकर उधेड़बुन कुछ अधिक ही करनी पड़ रही है। इसका कारण यह है कि इस बार प्रदेश में जिलों की संख्या 33 से बढक़र 50 हो गई है। सीएम अशोक गहलोत ने डेढ़ दर्जन से अधिक नए जिले सृजित कर जनता कौ चौंकाया है। यही कारण है कि चुनावी सहित अन्य व्यवस्थाएं ढांचे पर नहीं उतर पाई है।

अलवरJun 09, 2023 / 03:29 pm

Ramkaran Katariya

Assembly Elections

नए जिलों खैरथल, कोटपूतली-बहरोड़ के विस चुनाव अलवर ही कराएगा

अलवर. प्रदेश सरकार ने नए जिलों की घोषणा कर दी है, लेकिन अभी प्रशासनिक ढांचा वहां पूरी तरह नहीं बन पाया। इसके लिए प्रयास चल रहे हैं। यहां विधानसभा चुनाव की तैयारियां आसान नहीं हैं। इसके लिए पहले संसाधनों की आवश्यकता है। सबसे पहले अधिकारी व कर्मचारियों की फौज चाहिए। साथ ही सुरक्षा के लिए पूरे बंदोबस्त हों। पुलिस विभाग का पूरी तरह गठन हो। कानून व्यवस्था बनाए रखने में काम आने वाले हथियार आदि भी आवश्यकता होती है। इसी के साथ स्ट्रॉंग रूम का गठन और उसके अंदर का मजबूत ढांचा जरूरी है। बूथवार बीएलओ की ड्यूटी आदि की आवश्यकता है।
फंसा परिसीमन का पेच
बताते हैं कि नवंबर-दिसंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव कराने का जिम्मा अलवर के पास ही रहेगा। इसीलिए परिसीमन में भी पेच फंसा हुआ है। यहां चुनाव की तैयारियां युद्ध स्तर पर चल रही हैं। अधिकारियों को जिम्मेदारी दी जा रही है। 15 व 16 जून को जयपुर में चुनाव आयोग की बड़ी बैठक होने जा रही है जिसमें जिले के भी अफसर भाग लेंगे। उसके बाद पूरी तरह जिला चुनावी मोड़ में आ जाएगा।
आंकड़ों पर गौर करें तो जिले में अब तक वोटरों की संख्या 26.88 लाख है। इसमें नए जिले खैरथल में करीब तीन लाख वोटर हैं। वहीं कोटपूतली-बहरोड़ जिले में भी संख्या ढाई लाख के आसपास है। हालांकि कोटपूतली जयपुर का हिस्सा है। ऐसे में वहां वोटरों की संख्या में इजाफा होगा। अभी वोटर बनाने के लिए अगले माह से अभियान शुरू होंगे। बीएलओ से लेकर अधिकारी तक इस कार्य में लगाए गए हैं।
पूरे जिले की ईवीएम की चैकिंग से लेकर पैकिंग तक यहीं हुई
जिला प्रशासन की ओर से करीब 4 हजार ईवीएम की जांच यहां चुनाव आयोग की टीम ने की। करीब 12 इंजीनियर इस कार्य में लगाए गए। नेताओं को भी बुलाया गया। बताते हैं कि ईवीएम की जांच होने के बाद उसे कड़ी सुरक्षा में पैक करके स्ट्रॉंग रूम में रखा जाता है। ऐसे में अब ईवीएम चुनाव के दिन ही बाहर आएंगे। बताते हैं कि इन्हें अभी दूसरी जगह नहीं ले जाया जा सकता या फिर चुनाव आयोग की अनुमति की आवश्यकता होगी।
राजनीतिक दलों पर भी दबाव
नए जिले में वहां की व्यवस्था के अनुसार चुनाव कराने के लिए राजनीतिक दलों की तैयारियां भी जरूरी हैं। बताते हैं कि प्रमुख दलों के पास अभी यह ढांचा तैयार नहीं हो पाया है। यदि वहां अचानक चुनाव होंगे तो स्थानीय नेता अपनी सीटें यहां मजबूत करने में समय देंगे। ऐसे में वहां पार्टियां कमजोर साबित हो सकती हैं। उन्हें पदाधिकारियों घोषणा से लेकर तमाम तैयारियां करनी होंगी।

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