पहले चरण में बिखेरी जाएंगी 45 हजार बॉल जंगल तेजी से कम हो रहा है। अरावली भी बंजर हो गई है। हर साल पेड़ लगाने के बाद भी हरियाली में इजाफा नहीं हो रहा है। वन अधिकारियों ने बताया कि योजना के तहत बेर के बीज की चार हजार बॉल, लॉज की 10 हजार, कुमड़ा की 10 हजार, चुरेल की 10 हजार, छीला की 10 हजार व करंज की पांच हजार सीड बॉल डाली जाएंगी। सीड बॉल को पहाड़ी तथा वन विभाग की जमीनों पर डाला जाएगा। इस कार्य में प्रशिक्षु आईएफएस सुनील व अलवर रैंज के कर्मचारियों का विशेष योगदान रहा।
अंदर होते हैं बीज सीड बॉल बनाने के लिए चिकनी मिट्टी एवं खाद के मिश्रण को बॉल का आकार देकर उसके अंदर बीज डाला जाता है। बॉल को छाया में सुखाया जाता है। बॉल का उपयोग उन दुर्गम एवं बंजर स्थानों पर किया जाएगा, जहां गड्ढे खोदना व पौधे पहुंचाना संभव नहीं है।
जापानी वनस्पति विज्ञानी ने खोजी थी तकनीक सीड बॉल ( seed ball ) तकनीक जापानी वनस्पति वैज्ञानिक मासानोबू फुकुओका ने विकसित की है। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापान में खाद्य उत्पादन बढ़ाने के लिए इस तकनीक का उपयोग किया गया था। भारत के अनेक राज्यों में भी इस तकनीक से दुर्गम एवं बंजर स्थानों पर पौधरोपण में सफलता मिली है।
अलवर में पहला प्रयोग अलवर में पहली बार पौधरोपण में सीड बॉल तकनीक का उपयोग करने का निर्णय किया गया है। इससे बेहतर परिणाम मिलने की उम्मीद है। मिट्टी व खाद मिले बीज जल्द अंकुरित हो जाते हैं।
डॉ. आलोक गुप्ता, डीएफओ, वन मंडल अलवर
डॉ. आलोक गुप्ता, डीएफओ, वन मंडल अलवर