उस रात रकबर और उसका साथी असलम बडौदामेव से दो गाय लेकर पैदल-पैदल रामगढ़ से ललावंडी होते हुए कोलगांव-हरियाणा जा रहे थे। रात करीब 12 बजे ललावंडी गांव के अंदर कुछ लोगों ने उन्हें पकड़ लिया और गोतस्करी के शक में उनकी पिटाई शुरू कर दी। लोगों ने रकबर और असलम को एक खाली खेत में दौड़ा-दौड़ाकर कर बुरी तरह से पीटा। असलम भीड़ हाथों से निकलकर भाग छूटा और अंधेरे में खेतों में छिपते-छिपाते भाग निकला, लेकिन रकबर भीड़ के हत्थे चढ़ा गया। लोगों ने रकबर को खेत की गीली मिट्टी में दबोच-दबोचकर मारा।
जब वह अधमरा हो गया जब उसे वहीं पड़ा छोड़ दिया। इसके बाद रात 12.41 बजे नवलकिशोर शर्मा ने रात्रि ड्यूटी में तैनात थाने के एएसआई मोहनसिंह को फोन पर घटना की सूचना दी। थाने के आगे खड़े मिले नवलकिशोर को गाड़ी में बैठाकर एएसआई घटनास्थल पर पहुंचे। वहां उन्होंने रकबर के साथी असलम को तलाशा, लेकिन वह नहीं मिला। इसके बाद पुलिस अधमरी हालत में कीचड़ में सने रकबर और दो गायों को लेकर थाने के लिए रवाना हो गए।
खेत में मौजूद हैं निशान ललावंडी के जिस खेत में भीड़ ने रकबर को मारा था उस खेत की गीली मिट्टी में आज भी वो निशान मौजूद हैं जो मारपीट की घटना की पुष्टि करते हैं। उस खेत में लोगों के पैरों, रकबर को गीली मिट्टी में दबोचने पीटने और गायों के पैरों के निशान मौजूद हैं।
प्रत्यक्षदर्शी पर भी सवाल घटना के प्रत्यक्षदर्शियों पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। घटना जिस खेत में हुई उसके आसपास एक-डेढ़ किलोमीटर तक कोई घर नहीं है। घटना देर रात की होने के कारण वहां मौके पर कोई प्रत्यक्षदर्शी नहीं था, तो फिर नवलकिशोर शर्मा को घटना का पता कैसे चला? यदि कोई प्रत्यक्षदर्शी था तो उसने मारपीट करने वालों को क्यों नहीं देखा। पूरी घटना में जो प्रत्यक्षदर्शी सामने आए हैं वे सभी एक ही परिवार के लोग हैं।