जिसकी संख्या लगभग 16 हजार है। यहां प्रदर्शित वस्तुएं इतनी महत्वपूर्ण व दुर्लभ है कि उनका अन्यत्र मिलना ही मुश्किल है। यहां प्रदर्शित सामग्री को तीन विशाल कक्षों प्रदर्शित किया गया है। इस संग्रह को देखकर पर्यटक आश्चर्यचकित रह जाते हैं।
1940 से पहले कहलाता था नुमाइशखाना
महाराजा विनयसिंह ने सन 1847 में पुस्तकालय की स्थापना की। 20 जनवरी 1909 को पुस्तकशाला, सिलहखाना व तोशाखाना की एेतिहासिक सामग्री एवं महत्वपूर्ण कला सामग्री को एकीकृत कर नुमायशखाना विभाग की स्थापना की गई। मुंशी जगमोहन लाल व रामकंवर की देखरेख में सामग्री को प्रदर्शित किया गया। 12 जून 1940 को विधिवत रूप से संग्रहालय की स्थापना हुई।
एक म्यान में दो तलवार
कहावत है कि एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकती, लेकिन अलवर के संग्रहालय में एक एेसी तलवार प्रदर्शित की गई है। जिसमें एक म्यान में दो तलवार रखी हुई है। इसे देखने के लिए दूर दूर से पर्यटक आते हैं। इसके अलावा अस्त्र शस्त्र कक्ष में हजरत अली की तलवार, जिस पर फारसी लेख लिखा हुआ है। तलवार लक्खी, पत्थर काटने वाली तलवार के अलावा अनेक बंदूक, नागफांस, पेशकब्ज, छुरियां, कटारों का बहुत अच्छा संग्रह है।
यशवंत राव होल्कर वेशभूषा
इंदौर के महाराज यशवंत राव होल्कर के द्वारा युद्ध के दौरान पहने जाने वाली वेशभूषा भी यहां प्रदर्शित है। उनसे संबंधित हथियार भी यहां पर प्रदर्शित किया गया। 1803 में लासवाडी के युद्ध में इनकी मौत हो गई।
यहां पर एक की जगह पर बहुत सी ढालें प्रदर्शित की गई है। एक ही जगह पर गेंडें की खाल , कछूए की खाल, मगरमच्छ की खाल और मैटल से बनी ढाल प्रदर्शित की गई है। जबकि अन्य संग्रहालय में पर्यटकों को एक या दो तरह की ढाल ही देखने को मिलती है।