साथ ही, कोई किसान अवशिष्ट जलाने पर रोक नहीं लगाता है तो उस पर प्रदूषण नियंत्रण की ओर से नियमानुसार कानूनी कार्रवाई भी की जा सकती है। अलवर जिले में 2023-24 रबी सीजन में सरसों एक लाख 50 हजार 973 हैक्टेयर, गेहूं 77 हजार 084 हैक्टेयर और चने की 5 हजार 406 हैक्टेयर में बुवाई की गई है।
पंजाब, हरियाणा और यूपी में समस्या : हर साल धान की कटाई के बाद पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में किसान बड़े स्तर पर पराली जलाते हैं, जिसकी वजह से दिल्ली और एनसीआर इलाके में प्रदूषण फैल जाता है। इसे लेकर जुर्माना लगाया गया तो पराली जलाने के मामलों में 50 फीसदी तक की कमी दर्ज की गई।अब अलवर में इास आदेश के बाद प्रदूषण कम होने की उम्मीद है।
किसान मित्र होता है खत्म : कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक पीसी मीणा का कहना है कि खेत में आग लगाने से हानिकार गैस मीथेन, कार्बन मोनो ऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड उत्सर्जन होता है।
इस गैसों के निकलने से वातारण तो प्रभावित होता ही है। साथ ही, कैंसर, अस्थमा व प्रदूषण संबंधित बीमारियां पनपती हैं। फसल के अवशेषों को जलाने से भूमि के मित्र कीट और केंचुआ नष्ट हो जाते हैं, जिससे के कारण कीटों व फफूंद को नियंत्रित करने के लिए जहरीले कीटनाशकों का उपयोग करना पड़ता है। इससे मिट्टी प्रदूषित होकर किसानों पर उत्पादन लागत भी बढ़ जाती है।
अवशिष्ट उत्पादों का हो सकता है उपयोग खेतो में फसल के बाद बचने वाले अवशेष को कृषि यंत्रों जैसे कल्टीवेटर, रीपर, हैप्पी सीडर, स्ट्रा रीपर का इस्तेमाल करके फसल अवशेषों को छोटे-छोटे टुकड़ो में काटकर पशुओं और खाद के रूप में उपयोग किया जा सकता है। मिट्टी में फसल के अवशिष्ट को मिलाकर खाद उपयोग करने से पैदावार में बढ़ोतरी होगी। वहीं, अगर किसानों की ओर से फसल अवशिष्ट को जलाने पर मिट्टी में मौजूद लाभदायक जीवांश और सूक्ष्म जीव नष्ट हो जाते हैं, जो मृदा जैव विविधता के लिए गंभीर चुनौती बनती जा रही है।