15 साल का रिकॉर्ड : 5 साल से ज्यादा सभापति की राजनीति नहीं बढ़ी आगे
अलवर. पिछले २५ सालों के चुनावों का रिकॉर्ड देखे तो अलवर नगर परिषद में सभापति बनने वाले नेता की आगे राजनीति नहीं बढ पाई। सभापति बनने के बाद न कोई विधायक बना न सांसद। यही नहीं कुछ तो वापस पार्षद के चुनाव पर आ गए। जबकि गांवों मंे पंचायत राज चुनाव में सरपंच, पार्षद बनने वाले कई नेता विधायक व सांसद बनने का सफर तय कर चुके हैं।
जानकारों का कहना है कि नगर परिषद के सभापति के पद पर पार्टियों की ओर से ज्यादातर बार एेसा चेहरा लाया गया जिसने आगे विधायक व सांसद की ओर बढऩे के प्रयास ही नहीं किए। इसके पीछे भी राजनीति होती रही है। ये बने पार्षद से आगे विधायक व मंत्री जिले भर में कई एेसे नेता हैं जो पंचायत समिति सदस्य व जिला पार्षद बनने के बाद विधायक, सांसद व मंत्री बने हैं। जिनमें डॉ. जसवंत यादव जिला पार्षद बने। फिर जिला प्रमुख भी रहे।
विधायक, सांसद बनने के अलावा श्रम मंत्री बने। मौजूदा श्रम मंत्री टीकाराम जूली भी जिला पार्षद बनने के बाद जिला प्रमुख बने। फिर विधायक और अब श्रम राज्यमंत्री हैं। पूर्व मंत्री हेम सिंह भड़ाना पंचायत समिति सदस्य रहे। प्रधान रहने के बाद विधायक बने और मंत्री बने।
इसी तरह किशनगढ़बास के विधायक दीपचंद खैरिया जिला पार्षद सदस्य बने। जिला प्रमुख भी रहे। अब विधायक हैं। विधायक शकुंतला रावत भी पहले पार्षद बनने के बाद दो बार विधायक रही हैं। इस तरह जिले में सरपंच, पार्षद, प्रधान व जिला प्रमुख बनने के बाद कई नेता विधायक, सांसद व मंत्री बने हैं। लेकिन, नगर परिषद अलवर से सभापति का सफर तय करने वाले नेता आगे नहीं बढ़ सके। देखिए ये बने सभापति, आगे कुछ नहीं वर्ष १९९४ में सामान्य सीट पर योगेश सैनी सभापति बने।
इसी कार्यकाल में न्यायालय व सरकार के हस्तक्षेप से बाद में संजय नरूका व शिवलाल ने कुर्सी संभाली। इससे आगे की राजनीति नहीं कर पाए। वर्ष १९९९ में ओबीसी महिला आरक्षित सीट पर मीना सैनी चेयरमैन बनी। इसी कार्यकाल में शकुंतला सोनी ने भी कुर्सी संभाली है। कभी विधायक या सांसद बनने की दौड़ में ही नहीं पहुंची।
वर्ष २००४ में सामान्य सीट पर भाजपा से अजय अग्रवाल सभापति बने। जिन्होंने बखूबी अपना कार्यकाल पूरा भी किया। लेकिन, इससे आगे इनकी राजनीति भी नहीं चली। एक बार निर्दलीय विधायक का चुनाव लड़े लेकिन, बुरी तरह हार गए।वर्ष २००९ ओबीसी महिला आरक्षित सीट पर सीधे चुनाव में अलवर की जनता ने हर्षपाल कौर को सभापति बनाया। लेकिन, आधे कार्यकाल के बाद ही कुर्सी हिल गई।
सरकार ने कमलेश सैनी को सभापति बना दिया। फिर सुनीता खाम्बरा बनी। लेकिन, कार्यकाल के आखिरी दौर में वापस हर्षपाल कौर आ गई। सभापति रहने के बावजूद इस बार वापस पार्षद का चुनाव लड़ रही हैं। आगे की राजनीति में नहीं बढ़ सकी। वर्ष २०१४ में सामान्य सीट पर अशोक खन्ना सभापति बने। जिन्होंने कार्यकाल पूरा किया। लेकिन, अब शहरी निकाय चुनाव से पूरी तरह बाहर हो गए। न पार्टी ने टिकट दिया न खुद ने ज्यादा जोर दिया। बड़ी राजनीति की ओर भी नहीं बढ़े।