गौरतलब है कि राम जन्मभूमि मंदिर न्यास की ओर से अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए पत्थरों को तराशने का काम पिछले कई वर्षों से लगातार चलता रहा है। इन पत्थरों को राजस्थान से मंगाया जा रहा है। सैकड़ों की तादात में ऐसे पत्थर है जिन्हें नक्काशी के साथ तलाश कर वहां रखा जा चुका है। इन पत्थरों की ज्यादातर तादाद राजस्थान से आने वाले पत्थरों की है। इसके साथ ही मंदिर प्रयागराज के शंकरगढ़ टीले से पत्थर अयोध्या भेजे जाएंगे। इसके पहले भी बड़ी मात्रा में यहां के पत्थर अयोध्या जा चुके हैं जिनको तरासा का चुका है। लेकिन अब फैसले के बाद बड़े पैमाने पर इसे पंहुचने का काम होगा।
विश्व हिंदू परिषद के केंद्रीय संत संपर्क प्रमुख अशोक तिवारी ने बताया कि राजस्थान से जो पत्थर अयोध्या लाए गए हैं। उनकी खासियत यह है कि उन पर नक्कासी बेहद खूबसूरत होती है। लेकिन इन दिनों वहां खनन पर रोक लगने के बाद अन्य वैकल्पिक पत्थरों पर भी विचार किया जा रहा है। जिसमें शंकरगढ़ के पत्थर का उपयोग होगा । जिसके तहत शंकरगढ़ से बड़े पैमाने पर पत्थरों को अयोध्या पहुंचाया जाएगा।अशोक तिवारी ने बताया कि शंकरगढ़ के पत्थर की गुणवत्ता बेहद खास है।मुगल काल में संगम के किनारे अकबर के किले में इन पत्थरों का इस्तेमाल हुआ है साथ ही कई ऐतिहासिक इमारतें इन पत्थरों से बनाई गई है। सैकड़ों वर्षों पुराना किला हर साल बरसात में महीनों तक पानी में डूबा होता है किले की एक चौथाई से ज्यादा दीवार पानी के अंदर होती है। इसके बावजूद भी अब तक किले की दीवारों को कोई नुकसान नहीं हुआ है। किले में लगे पत्थर टूटे और गिरे नहीं है उन्हें किसी भी तरह का क्षरण नहीं हुआ है ।
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उन्होंने बताया की इन पत्थरों को मंदिर की नीव और दीवारों को बनाने के उपयोग में लाया जा सकता है। बता दें शंकरगढ़ स्थित गढ़वा के किले में इन पत्थरों का बड़े पैमाने पर उपयोग किया गया है।मौर्योत्तर काल के उपरांत तीसरी शताब्दी ईस्वी में अस्तित्व में आए तीन राजवंशों में से एक गुप्त वंश में बने इस किले को भी इन्ही पत्थरों से बनाया गया है। यह किला भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित है। जबकि अकबर के किले में लंबे समय से सेना का आयुध भंडार है।