इलाहाबाद. पूरब के एक्सपोर्ट में छात्रसंघ का चुनाव घोषित होने के बाद छात्र नेताओं ने प्रचार प्रसार में पूरी ताकत लगाई है। विश्वविद्यालय प्रशासन भले ही चुनाव आचार संघिता और दोह की सिफारिशों की दुहाई देता घूम रहा हो। लेकिन छात्र नेता आचार संहिता उल्लंघन से बाज नहीं आ रहे हैं।
IMAGE CREDIT: net विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के ऐतिहासिक चुनाव को देखते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन सहित जिला प्रशासन की भी तैयारियां जोरों पर शुरू है। लेकिन छात्र नेताओं पर फर्क नहीं पड़ रहा। विश्वविद्यालय कैम्पस सहित आस पास और शहर के सभी प्रमुख स्थानों और चौराहों पर संभावित प्रत्याशियों ने अपने होल्डिंग और बैनर से पूरे इलाके को पाट दिया है। यही नहीं छात्रसंघ प्रत्याशी शहर की गलियों में अपनी गाड़ियों के काफिले से हंगामा मचाए हुए हैं। सुबह बाइक रैली से शुरू होने वाला है प्रचार देर रात बड़ी.बड़ी लग्जरी गाड़ियों के काफिले तक पहुंच रहा है।
IMAGE CREDIT: net वही छात्रसंगठन भी राजनीतिक दलों की तरह छात्र-छात्राओं से विश्वविद्यालय से जुड़े मुद्दों पर वादे करती घूम रहे हैं। छात्रनेता छात्रों का हक दिलाना और उनके हक की लड़ाई लड़ने के बड़े.बड़े वादों के साथ प्रचार कर रहे हैं। लेकिन बताते चलें कि छात्र संघ चुनाव को लेकर जो परिस्थितियां आज से 5 साल पहले थी। वहीं आज भी है जिन बातों के साथ छात्र नेता उस वक्त मैदान में थे। आज भी वही हालात है। अब तो आलम यह है की छात्र संघ चुनाव भी विधान सभा और लोक सभा की तरह लड़े जा रहे है। जैसे हर राजनीतिक पार्टियों के कुछ मुद्दे आज तक विधानसभा लोकसभा में चलता आ रहा है।राजनितिक दलों की तरह उनके अनुषांगिक संगठन भी वही कर रहे हैं।बता दें की विश्वविद्यालय में महामंत्री प्रत्याशी की हत्या के बाद से छात्रसंघ पर लगी रोक को 2012 में हटायी गई। और तब से चुनाव हो रहे हैं।पिछले पांच चुनाव में प्रत्याशियों ने छात्र संघ की प्राचीर से जो भाषण दिया है। अब उसके शब्द बदलकर वही वादे आगे पीछे चल रहे हैं ।लेकिन निर्वाचित होने के बाद छात्र नेता उन सारे वादों को विधायक और सांसदों की तरह भूल जाते हैं।विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से छात्र संघ चुनाव एक बार लड़ने की बाध्यता के कारण जितने वाले प्रत्याशी छात्र हित के मुद्दों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों और जवाबदेही को नहीं समझते है।और वह अपनी जीत के बाद अपनी धुन में जी रहे है। आगर बीते दो कार्यकाल की बात करे तो पदाधिकारियों का ज्यादा समय विश्वविद्यालय प्रशासन के साथ लड़ाई में ही बीत रहा है।
IMAGE CREDIT: netइन मुद्दों पर मांग रहे वोट इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ चुनाव में बीते पांच सालों से लाइब्रेरी में किताबों का इशू करवाना सबसे बड़ा मुद्दा है।प्रत्याशियों ने बीते चुनाव में यह वादा किया था कि चुनाव जीतने के बाद यह व्यवस्था करवाएंगे। स्नातक के छात्रों को लाइब्रेरी से किताबें इशू होंगी। बतादें की पिछले 10 सालों से किताबे इशू नहीं हो रही है।
IMAGE CREDIT: net लाइब्रेरी 24 घंटे खुलवाने का विवाद आयु छात्र नेता कर चुके हैं जो फिर से दोहराया जा रहा है।वहीं कई प्रत्याशी चुनाव जीतने के बाद छात्रों के लिए सिटी बस सेवा शुरू करवाने का वादा किया।जो सपा सरकार में चलाई गई। लेकिन अब उनका पता नही है। कैम्पस में कैंटीन खुलवाने की बात कही पिछले चुनाव में जोरो पर थी।
जो इस चुनाव में भी प्रचार का मुद्दा है। वही कैम्पस में बेहतर मेडिकल सुविधा का इंतजाम करवाने का मुद्दा बीते चुनाव की तरह इस चुनाव में भी है। विश्वविद्यालय की प्राचीर से सबसे ज्यादा इस बात पर जोर दिया गया कि कैंपस में किसी भी तरह की छेड़खानी नहीं होगी। उसके लिए एक सेल की स्थापना की जाएगी महिला सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा बन कर बीते चुनाव की तरह इस बार भी सामने है। लेकिन छात्र नेता भी की तरह सिर्फ वादे और वादे करते दिख रहे है।
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