कभी अजमेर सहित राजस्थान के विभिन्न जिलों में स्वच्छंद विचरण करने वाले टाइगर (tiger) का अस्तित्व अब खतरे में है। अंधाधुंध शिकार, वन्य क्षेत्रों और वन्य जीवों की घटती तादाद (wild animal)से अजमेर जिले से 69 वर्ष पहले टाइगर लुप्त हो चुका है। राजस्थान (rajasthan) में भी सवाई माधोपुर, अलवर, कोटा और उदयपुर की सेंचुरी में करीब 50-55 टाइगर बचे हैं। जबकि वैश्विक स्तर पर वर्ष 2022 तक टाइगर की तादाद बढ़ाने पर गंभीरता से विचार किया जा रहा है।
आजादी से पहले राजस्थान में कोटा, सवाईमाधोपुर, उदयपुर, जोधपुर, झालावाड़, बांसवाड़ा और अन्य इलाकों में टाइगर की बहुतायत थी। इनमें अजमेर का अरावली पर्वतमाला (aravalli hills)-नाग पहाड़ क्षेत्र (nag pahad) भी शामिल था।यहां वन्य क्षेत्र में टाइगर स्वच्छंद विचरण करते थे। इसके अलावा इस क्षेत्र में सांभर, चीतल, हरिण, नीलगाय की बहुतायत थी। इसके चलते टाइगर भोजन के लिए इनका शिकार करते थे। लेकिन अंधाधुंध शिकार, वन्य क्षेत्र और वन्य जीवों की कमी के चलते नाग पहाड़, अजमेर -पुष्कर क्षेत्र से करीब 70 वर्ष पहले टाइगर का अस्तित्व खत्म (crisis) हो गया।
read more: Rain: अजमेर जिले से मारवाड़ होता हुआ बॉडर तक जाता है बारिश का पानी ब्रिटिशकाल में था कड़ा कानून..
ब्रिटिशकालीन भारत (british india) में वन्य जीव कानून बेहद कड़े थे। ब्रिटिशकाल में अजमेर-मेरवाड़ा केंद्र प्रशासित प्रदेश था। यहां चीफ कमिश्नर और पुलिस सुप्रिन्टेंडेंट पद पर अंग्रेज अधिकारी नियुक्त किए जाते थे। कानून और वन्य क्षेत्र की सुरक्षा (security) की जिम्मेदारी पुलिस अधीक्षक के पास होती थी। वन क्षेत्र में आमजन बिना इजाजत अंदर प्रवेश नहीं कर सकते थे। कानून और नियमों की अवेहलना करने पर कड़ी सजा का प्रावधान था। 1947 में आजादी के बाद से स्थिति बदलती चली गई है।
ब्रिटिशकालीन भारत (british india) में वन्य जीव कानून बेहद कड़े थे। ब्रिटिशकाल में अजमेर-मेरवाड़ा केंद्र प्रशासित प्रदेश था। यहां चीफ कमिश्नर और पुलिस सुप्रिन्टेंडेंट पद पर अंग्रेज अधिकारी नियुक्त किए जाते थे। कानून और वन्य क्षेत्र की सुरक्षा (security) की जिम्मेदारी पुलिस अधीक्षक के पास होती थी। वन क्षेत्र में आमजन बिना इजाजत अंदर प्रवेश नहीं कर सकते थे। कानून और नियमों की अवेहलना करने पर कड़ी सजा का प्रावधान था। 1947 में आजादी के बाद से स्थिति बदलती चली गई है।
यूं लगाया था नरभक्षी को ठिकाने..
वर्ष 1950 में लीला-सेवड़ी-पुष्कर क्षेत्र में नरभक्षी टाइगर का आतंक था। वह गांव में जानवरों के शिकार के अलावा कई लोगों को मार चुका था। लोगों ने अजमेर के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर ठाकुर औंकारसिंह को जान-माल की सुरक्षा की गुहार लगाई। इस पर ठाकुर सिंह ने अपनी बंदूक से नरभक्षी टाइगर को ठिकाने लगाया था।
वर्ष 1950 में लीला-सेवड़ी-पुष्कर क्षेत्र में नरभक्षी टाइगर का आतंक था। वह गांव में जानवरों के शिकार के अलावा कई लोगों को मार चुका था। लोगों ने अजमेर के तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर ठाकुर औंकारसिंह को जान-माल की सुरक्षा की गुहार लगाई। इस पर ठाकुर सिंह ने अपनी बंदूक से नरभक्षी टाइगर को ठिकाने लगाया था।
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19 वीं शताब्दी के पूर्वाद्र्ध (आजादी से पहले) तक राजस्थान सहितअजमेर-पुष्कर और आसपास के क्षेत्रों में शेरों और बाघों की तादाद ठीक थी। इसके चलते यहां कई गांवों और कस्बों के नाम भी रखे गए। इनमें बाघसुरी, नाहरपुरा, बघेरा, शेरगढ़, जयपुर का नाहरगढ़ शामिल हैं।
19 वीं शताब्दी के पूर्वाद्र्ध (आजादी से पहले) तक राजस्थान सहितअजमेर-पुष्कर और आसपास के क्षेत्रों में शेरों और बाघों की तादाद ठीक थी। इसके चलते यहां कई गांवों और कस्बों के नाम भी रखे गए। इनमें बाघसुरी, नाहरपुरा, बघेरा, शेरगढ़, जयपुर का नाहरगढ़ शामिल हैं।
1947 से 50 के आसपास अरावली पर्वतमाला-नाग पहाड़ क्षेत्र में कभी टाइगर स्वच्छंद विचरण करते थे। यहां चीतल, सांभर, हिरण इनकी खुराक होते थे। लेकिन अब इनका अस्तित्व समाप्त हो चुका है। राजस्थान में रणथम्भौर, सरिस्का, मुकुंदरा और कुछेक सेंचुरी में टाइगर हैं। पूरी दुनिया में महज तीन हजार के आसपास टाइगर हैं। सख्त कदम नहीं उठाए गए तो यह पूरी तरह विलुप्त हो जाएंगे।
महेंद्र विक्रम सिंह, पर्यावरणविद और वल्र्ड लाइफ फंड के सदस्य