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अजमेर

हम तो कुछ भी खा लेंगे….इन पशुओं का क्या करें!

बाढग़्रस्त गांव भमरौली के ग्रामीणों ने बताई पीड़ा
अरे साहब…जब-जब चंबल नदी में पानी आता है…तब-तब गांव को खाली करना पड़ता है….कई वर्षों से ऐसा ही होता आ रहा है…पानी जब-जब उतरता है…बर्बादी के निशां छोड़ जाता है। यह कहना है शहर के समीपवर्ती चंबल के तटवर्ती गांव में रहने वाले गंधर्व सिंह का।

अजमेरAug 06, 2021 / 01:45 am

Dilip

हम तो कुछ भी खा लेंगे....इन पशुओं का क्या करें!

हम तो कुछ भी खा लेंगे….इन पशुओं का क्या करें!

धौलपुर. अरे साहब…जब-जब चंबल नदी में पानी आता है…तब-तब गांव को खाली करना पड़ता है….कई वर्षों से ऐसा ही होता आ रहा है…पानी जब-जब उतरता है…बर्बादी के निशां छोड़ जाता है। यह कहना है शहर के समीपवर्ती चंबल के तटवर्ती गांव में रहने वाले गंधर्व सिंह का।
सिंह ने बताया कि चंबल में पानी आने पर गांव में पानी भर जाने पर गांव वाले तो सुरक्षित स्थानों पर पहुंच जाते है, ऐसे में लोग जैसे-तैसे अपने खाने-पीने की व्यवस्था तो कर लेते है, लेकिन पशुओं को इस दौरान समस्या बड़ी हो जाती है। एक ओर खेतों में पानी की वजह से चारा नष्ट होता है, तो वहीं चारे के लिए पशुओं को दर-दर भटकना पड़ता है। बाढ़ की स्थिति में गांव में सांप, बिच्छू सहित कई जहरीले कीड़ें भी बाहर जाते है, जिनसे पशुओं का बचाव करना ही सबसे बड़ी समस्या है।
गांव भमरौली निवासी मुन्ना गुर्जर बताते है कि गांव में वर्षों से यह चला आ रहा है कि जब-जब तेज बारिश होती है, ग्रामीण स्वयं के स्तर पर ही सुरक्षा के व्यवस्थाएं जुटाना शुरू कर देते है। ऐसे में गांव के लोग अपने-अपने घरों में टूयूबों में हवा भर कर रख लेते है, ताकि बाढ़ की स्थिति में अपने परिवार को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा सके। गांव वालों ने चंबल नदी के ऊंचाई क्षेत्र के जंगल क्षेत्र में सुरक्षित रहने के लिए ठिकाने भी बना लिए है, लेकिन सबसे बड़ी समस्या पशुओं के चारे की रहती है।
गांव के प्रकाश गुर्जर बताते है गांव में पानी प्रवेश कर जाने की स्थिति में सभी गांव वालों में डर का माहौल रहता है, पहले बाढ़ की स्थिति के दौरान गांव में कई बार मगरमच्छ तक आ चुके है, बिलों में पानी भर जाने पर जहरीले सांप व अन्य कीड़ों का प्रकोप बढ़ जाता है। बाढ़ के आने और जाने के बाद भी गांव के लोग भयभीत बने रहते है। प्रकाश ने बताया कि गांव में बाढ़ की स्थिति के दौरान प्रशासन की ओर से दवाईयां, छिड़काव सहित अन्य व्यवस्थाएं तो करा दी, लेकिन पशुओं के चारे के लिए ग्रामीणों को परेशानी का सामना लम्बे समय तक करना पड़ता है।

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