सदियों से पशु-पक्षियों और मनुष्यों का गहरा संबंध रहा है। प्रवासी पक्षी दुनिया भर में एक से दूसरे स्थान आते-जाते हैं। खासतौर पर प्रवासी पक्षियों के लिए अजमेर की जलवायु और भूमि काफी अनुकूल है। आनासागर में प्रवासी पक्षियों की आवक हो गई।
राजस्थान पत्रिका और जिाल प्रशासन ने इसी साल फरवरी में बर्ड फेर का आयोजन कराया था। इससे प्रेरित होकर महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय ने पक्षी संरक्षण पर सर्टिफिकेट कोर्स प्रारंभ किया है। कोर्स की अवधि छह महीने की है। यह कोर्स विद्यार्थियों के लिए भविष्य में यह रोजगार के अवसर खोलेगा। फॉरेस्ट गार्ड, ईको टूरिज्म, पर्यावरण परामर्शी (कंसलटेंट), पक्षी विज्ञान क्षेत्र कॅरियर बना सकेंगे।
पर्यावरण बदलाव का होता असर
पर्यावरण बदलाव से प्रवासी पक्षियों के आवास, प्रजनन और अन्य क्षमताएं प्रभावित हो रही हैं। प्लास्टिक और दूषित पदार्थों के चलते इन्हें समुचित भोजन नहीं मिल पाता। सडक़ हादसों और प्रदूषण के चलते प्रवासी पक्षियों की मृत्यु हो जाती है। इनके संरक्षण के लिए आमजन को गंभीर प्रयास करने की जरूरत है। प्रवासी पक्षियों के लिए अजमेर की जलवायु और भूमि अनुकूल है। जैव विविधता में कमी के चलते धीरे-धीरे प्रवासी पक्षियों की आवक में कमी आ रही है।
पर्यावरण बदलाव से प्रवासी पक्षियों के आवास, प्रजनन और अन्य क्षमताएं प्रभावित हो रही हैं। प्लास्टिक और दूषित पदार्थों के चलते इन्हें समुचित भोजन नहीं मिल पाता। सडक़ हादसों और प्रदूषण के चलते प्रवासी पक्षियों की मृत्यु हो जाती है। इनके संरक्षण के लिए आमजन को गंभीर प्रयास करने की जरूरत है। प्रवासी पक्षियों के लिए अजमेर की जलवायु और भूमि अनुकूल है। जैव विविधता में कमी के चलते धीरे-धीरे प्रवासी पक्षियों की आवक में कमी आ रही है।
अजमेर में ये पक्षी चिन्हित कॉमन टील, रफ, लिटिल स्टैंड, लिटिल ग्रीन हैरोन, थ्रोटेड किंगफिशर, ब्लैक विंग्ड स्टिल्ट, स्मॉल कैरोमेन्ट, इंडियन कैरोमेन्ट, लार्ज ई-ग्रेट, इंटर मिडिएट ई-ग्रेट, लिटिल ई-ग्रेट, व्हाइट ब्रेस्टेड वाटर हैन, ब्लैक टेल्ड गॉडविट, कॉमन स्नाइप, ब्ल्यू रॉक पिजन, लिटिल ग्रेब, कॉमन सैंड पाइपर, पौंड हेरोन, येलो वैगटेल, ग्रे वेगटेल, सिटनिर वैगटेल, इयूरेसियन कोलार्ड डव और अन्य।
कई जगह आते प्रवासी पक्षी जिले में कई क्षेत्रों से प्रवासी पक्षी आते हैं। अजमेर में आनासागर झील, फायसागर, ब्यावर के बिचड़ली तालाब, किशनगढ़ के गूंदोलाव, सावर-नापाखेड़ा पर बनास नदी और अन्य क्षेत्रों में प्रवासी पक्षी आते हैं। राजस्थान पत्रिका के प्रयासों से दो बार बर्ड फेर का आयोजन हुआ है। इससे आमजन को पक्षियों की प्रजातियां देखने के साथ-साथ उनके प्रति लगाव बढ़ा। पक्षीविदों, शिक्षकों और आमजन ने पक्षियों को प्राकृतिक पर्यटक बताते हुए इनके संरक्षण पर जोर दिया।