यूजीसी की बेहतर नैक ग्रेडिंग लेने और उससे जुड़े तैयारियों में उत्तर भारत के कई कॉलेज-यूनिवर्सिटी पिछड़े हैं। प्रति तीसरे महीने आंतरिक मूल्यांकन, गुणवत्तापूर्ण शिक्षण, तकनीकी इस्तेमाल में कमी इसके जिम्मेदार हैं। जबकि दक्षिण भारत और अन्य प्रदेशों के संस्थान बेहतर ग्रेडिंग लेकर कहीं आगे हैं।
यूजीसी की राष्ट्रीय प्रत्यायन एवं मूल्यांकन परिषद (नैक) से देश के सभी कॉलेज और यूनिवर्सिटी को ग्रेडिंग लेनी अनिवार्य है। नैक पांच वर्ष के लिए ग्रेडिंग देती है। इसमें फेकल्टी कार्यक्रम, सह शैक्षिक गतिविधियों, खेलकूद, परीक्षा, सेमेस्टर अैार अन्य गतिविधियों का मूल्यांकन होता है।उत्तर भारत के संस्थान पीछेनैक की सिफारिशों में कॉलेज-यूनिवर्सिटी को प्रत्येक तीसरे महीने में आंतरिक मूल्यांकन करना जरूरी है। इसमें सिलेबस मूल्यांकन, शिक्षण व्यवस्था, विद्यार्थियों के प्लेसमेंट, तकनीकी इस्तेमाल, हाईटेक लेब और अन्य बिंदु शामिल हैं। इस मामले में उत्तर भारत के कई संस्थान पिछड़े हैं। दक्षिण भारत और अन्य राज्यों में संस्थाओं में वर्षभर मूल्यांकन कार्यक्रम चलते हैं।
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दूसरे राज्यों के संस्थान यूं हैं आगे-औद्योगिक और वैश्विक मांग के अनुसार सिलेबस
-विद्यार्थियों के लिए समयानुकूल विशिष्ट कोर्स -प्रवेश के लिए विद्यार्थियों में अखिल भारत स्तर पर प्रतिस्पर्धा-गुणवत्तापरक शोध, शोध के होते हैं पेटेन्ट
-नामचीन कंपनियों के कैंपस प्लेसमेंट और कॅरियर काउंसलिंग
-जॉब ओरिएन्टेड और कौशल विकास पाठ्यक्रम
-नैक सिफारिश के अनुसार प्रत्येक तीसरे महीने मूल्यांकन
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सोफिया कॉलेज-ए ग्रेड
क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान-ए प्लस ग्रेड
एसपीसी-जीसीए-ए ग्रेड
महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय-बी डबल प्लस
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हिंदू कारीगरों की बनाई चादर से सजता है ख्वाजा का दर उत्तर भारत में भी कई संस्थानों का नैक ग्रेडिंग अच्छा है। उनमें कई बेहतर कोर्स-रिसर्च हो रहा है। बेहतर क्वालिटीके लिए नैक के अनुरूप नियमित मूल्यांकन, उच्च स्तरीय सेमिनार-सह शैक्षिक गतिविधियां जरूरी हैं। दक्षिण भारत और अन्य प्रांतों में इनको ही अपनाया जाता है।प्रो. दोराईराज, नैक मूल्यांकनकर्ता और पूर्व कुलपति गांधीधाम यूनिवर्सिटी