अजमेर

technical education: रीडर और लेक्चरर के भरोसे इंजीनियरिंग कॉलेज

शैक्षिक अनुभव, रिसर्च पेपर, पाठ्य पुस्तक लेखन और अन्य नियमों के तहत लेक्चरर से रीडर और रीडर से प्रोफेसर बनाए जाए हैं। प्रोफेसर को सर्वोच्च शैक्षिक ओहदा माना जाता है। उनके अनुभवों का संबंधित विभाग, संस्थान को लाभ होता है।

अजमेरAug 05, 2019 / 04:55 am

raktim tiwari

professor post in college

रक्तिम तिवारी/अजमेर. प्रदेश के अधिकांश इंजीनियरिंग कॉलेज (engineeing college) केवल रीडर और लेक्चरर के भरोसे संचालित हैं। इनमें ना प्राचार्य ना शिक्षक प्रोफेसर (professo) हैं। केंद्र और राज्य सरकार (state govt) एवं एआईसीटीई (aicte)भी नियमों की पालना नहीं करा रहे हैं। यही हाल रहा कॉलेज से ‘प्रोफेसर ’ पद ही समाप्त हो जाएगा।
प्रदेश में 1995-96 तक जोधपुर के एमबीएम, कोटा इंजीनियरिंग और गिने-चुने निजी इंजीनियरिंग कॉलेज थे। गुजरे 25 साल अजमेर के बॉयज, महिला इंजीनियरिंग सहित बीकानेर, बारां, झालावाड़, बांसवाड़ा, भरतपुर में सरकारी (government) इंजीनियरिंग और निजी क्षेत्र (private sector) में सौ से ज्यादा कॉलेज खुल गए हैं। इनमें 55 से 60 हजार से ज्यादा सीट हैं। इक्का-दुक्का कॉलेज को छोडक़र 90 प्रतिशत में विभागवार प्रोफेसर नहीं हैं।
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प्रोफेसर की जरूरत क्यों..
कॉलेज और यूनिवर्सिटी में शिक्षक सीधी भर्ती अथवा कॅरियर एडवांसमेंट स्कीम (career advancement) के तहत प्रोफेसर (आचार्य) बनाए जाते हैं। शैक्षिक अनुभव, रिसर्च पेपर, पाठ्य पुस्तक लेखन और अन्य नियमों के तहत लेक्चरर (lecturer) से रीडर (reader) और रीडर से प्रोफेसर बनाए जाए हैं। प्रोफेसर को सर्वोच्च शैक्षिक ओहदा माना जाता है। उनके अनुभवों का संबंधित विभाग, संस्थान को लाभ होता है। खुद एसआईसीटीई ने विभागवार न्यूनतम एक प्रोफेसर, दो रीडर और तीन लेक्चरर की अनिवार्यता जरूरी की है।
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अब तक नहीं बने प्रोफेसर
वर्ष 1997-98 के बाद खुले अधिकांश सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में विभागवार प्रोफेसर नहीं है। यहां शुरुआत से लेक्चरर और रीडर ही विद्यार्थियों (students) को पढ़ा रहे हैं। रीडर्स की कॅरियर एडवांसमेंट स्कीम में प्रोफेसर पद पर पदोन्नति (promotion) अथवा कॉलेज में प्रोफेसर की सीधी भर्तियां (dierct recruitment) भी नहीं हो रही हैं। निजी कॉलेज में तो हाल ज्यादा खराब हैं। अधिकांश कॉलेज में सिर्फ लेक्चरर ही कार्यरत हैं। एआईसीटीई (AICTE) और यूजीसी (U.G.C) अपने बनाए नियमों को बचाने में विफल साबित हुई हैं।
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रीडर बनाए जा रहे हैं प्राचार्य
इंजीनियरिंग कॉलेज में बतौर प्रोफेसर दस साल कार्य करने वाले शिक्षक को ही प्राचार्य बनाने का नियम है। पिछले 15 साल सरकार और तकनीकी शिक्षा विभाग (technical education dept) चहेतों को कमान सौंपने की गरज से नियम (regulations) को तोड़ रहे हैं। अब रीडर (reader) को प्राचार्य बनाया जाने लगा है। कॉलेज में नियुक्त प्राचार्य खुद भी प्रोफेसर नहीं बने हैं। अजमेर के बॉयज इंजीनियरिंग कॉलेज में एम.रायसिंघानी, श्रीगोपाल मोदानी और रंजन माहेश्वरी ही बतौर प्रोफेसर प्राचार्य रहे हैं।

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