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बोले सुरेंद्र शर्मा-सबके भीतर छिपी है हंसी, पहले अपने ऊपर हंसना तो सीखिए

आज पड़ोसी पड़ोसी और भाई-भाई की तरक्की से खुश नहीं है। शिक्षा, धर्म, चिकित्सा और राजनीति सेवा की बजाय उद्योग बन गए हैं।

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poet surendra sharma in ajmer

poet surendra sharma in ajmer

रक्तिम तिवारी/अजमेर।

संस्कृति एवं साहित्यिक रंग के बीच चुटीले हास्य ने श्रोताओं को खूब गुदगुदाया। आम जिंदगी से जुड़ी हंसी-मजाक की फुहारों में सब सराबोर होते दिखे। शिक्षा और साहित्य के बीच तारतम्य, महाभारत काल के पात्र और हाइटेक युग की चर्चाओं के बीच कविताएं भी सुनाई दीं। राजनेताओं, चिंतक-विचारकों, कवियों और लेखकों के बीच अजमेर लिटरेचर फेस्टिवल का सफर आगे बढ़ता नजर आया। कहीं सहिष्णुता और असहिष्णुता और मौजूदा दौर की शिक्षा व्यवस्था की गंभीर बातें उठीं तो कही जिंदगी के मायने समझाने वाली रचनाएं भी गूंजी। श्रोताओं ने चर्चाओं के बीच सवाल पूछकर मौजूदगी का एहसास कराया।

अब हास्य ने ले ली है करुणा की जगह, सहज हास्य दुरूह लेखन विषयक सत्र में चार लाइन सुणा रियो हूं....की चिरपरिचत शैली के कवि सुरेंद्र शर्मा ने बहुत सहजता से समझाया। उन्होंने कहा कि सहज लिखना बहुत कठिन है। इसके लिए खुद को भी सहज होना पड़ता है। जब हम खुद हंसते हैं तो ईश्वर की प्रार्थना कर रहे होते हैं। लेकिन जब हम किसी को हंसाते हैं उसके आंसू पोंछते हैं तो ईश्वर हमारे लिए प्रार्थना कर रहा होता है। हर मानव में हास्य छिपा बैठा है, केवल खुद पर हंसने की कला आनी चाहिए।

उन्होंने कहा कि आज की तरह पहले भौतिक संसाधन नहीं थे तो हमें करुणा पसंद थी। लेकिन आज के भौतिक युग में करुणा समाप्त हो गई है तो हास्य पसंद आने लगा है। आज पड़ोसी पड़ोसी और भाई-भाई की तरक्की से खुश नहीं है। शिक्षा, धर्म, चिकित्सा और राजनीति सेवा की बजाय उद्योग बन गए हैं। कवि सम्मेलनों में पहले गीतकार राजा, वीर रस के कवि वजीर और हास्य कवि प्यादे की तरह कोने में बैठते थे। जमाना बदला तो सब कुछ बदल गया है। अब हास्य कवि राजा और बाकी दोनों वजीर और प्यादे बनते जा रहे हैं। इस दौरान कवि सुरेंद्र शर्मा ने अपने चुटीली हास्य व व्यंग्य की रचना से श्रोताओं को गुदगुदाया और सोचने पर मजबूर भी किया।

देश में मिलती बगैर मंत्रालय की शिक्षा
'शिक्षा और साहित्य में अंतर्संबंध विषयक सत्र में दिल्ली के उप मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने देश की शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि देश में बिना शिक्षा मंत्रालय के शिक्षा मिलती है। यहां मानव को संसाधन माना जाता है। हम अपने बच्चों को डॉक्टर इंजीनियर वैज्ञानिक बनाने के लिए विज्ञान विषय में अणु-परमाणु और गणित तो पढ़ा रहे हैं उन्हें इसके लिए ट्यूशन भी लगाते हैं लेकिन उन्हें कबीर, पंत या प्रेमचंद जैसा साहित्यकार नहीं बनाना चाहते। हिंदी पढ़ाने के लिए ट्यूशन नहीं लगवाते। विज्ञान-गणित में अच्छे अंक आने पर अपने बच्चों की पीठ ठोकते हैं लेकिन हिंदी में अच्छे अंक आने पर उसकी उतनी सराहना नहीं करते।

सिसोदिया ने कहा कि हमने साहित्य का महत्व जाना-समझा नहीं है। यह अत्यंत चिंता का विषय है कि वास्तव में बचपन से युवा होने तक विद्यार्थी को हम सिर्फ संसाधन बना रहे हैं। वहीं लेखक प्रेम भारद्वाज ने कहा कि शिक्षा और साहित्य में सीधा संबंध नहीं दिखता है। उन्होंने प्रसिद्ध हॉलीवुड फिल्म अभिनेता चार्ली चैपलिन के कथन को उद्धृत करते हुए कहा कि कोई भी दृश्य लॉन्ग शॉट में हो तो हास्य है लेकिन क्लोज अप हो तो वही ट्रेजेडी बन जाता है।

विविधता से रूपायित होती है संस्कृति
संस्कृति एक सतत प्रवाह विषयक सत्र में कवि व अनुसंधान अधिकारी हनुमान सिंह राठौड़ ने कहा कि संस्कृति एक विचार और जीवन दर्शन है जो विविधता से रूपायित होती है। यह समय-काल और परिस्थितियों से पल्लवित होती है। संस्कृति बिना पूरी परख और कसौटी पर कसने के बाद ही किसी विचार को अपने सतत प्रवाह में लेती है। भाजपा नेता व राजस्थान विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष राव राजेंद्र सिंह संस्कृति किसी समाज का चरित्र और अपने आप में एक सकारात्मक व्यवस्था और जीवन को समझने का रचनात्मक पहलू होती है। संस्कृति का भौतिक स्वरूप राष्ट्र और समाज होता है। संस्कृति का विमोचन एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरण से होता रहता है।

गूंजी कविताएं

कविता समय सत्र में कविताएं गूंजी। प्रदीप गुप्ता ने हास्य कविता मौत में मैनेजमेंट सुनाकर दाद पाई। गोविंद भारद्वाज ने उर्दू अदब की गजलें सुनाई। डॉ. अनंत भटनागर ने एक लड़की जो मोटर साइकिल चलाती है..., हेमा उदावत ने खुदा की रहमतों..., रामावतार यादव ने इश्क ने काबिल बना दिया...कविता सुनाई। बख्शीश सिंह, डॉ. एन. के.भाभड़ा, गोपाल माथुर और अन्य ने भी रचनाएं प्रस्तुत की।

यह रहेंगे मौजूद :

शीनकाफ निजाम, गौरव त्रिपाठी, प्रतीप सौरभ, पंकज प्रसून, प्रांजल धर।