अजमेर. शहर (city) में जीवनयापन करने वाले एवं मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण करने वाले हजारोंं लोगों को ना तो शुद्ध पानी मिल रहा है ना बच्चों (childrens) को संतुलित आहार। कई परिवार पेयजल लाइनों के रिसाव में नाले में उतर कर तो कुछ नालियों के पास लगे नल के रिसाव से पानी भरकर पीने का जुगाड़ करते हैं। नालियों में बहती गंदगी की दुर्गन्ध के पास बोतलें लगाकर रिसाव से पानी भरते लोगों पर किसी को भी तरस तक नहीं आ रही।
शहर के चहुंओर बसी कच्ची बस्तियों में रहने वाले परिवारों का ‘भविष्यÓ भी खतरे में हैं। नौनिहालों को पीने का पानी हों चाहे भोजन (food)पर्याप्त नहीं मिल रहा है। कई बस्तियों में तो बच्चे पानी के बंदोबस्त के लिए बोतलें एवं डिब्बे आदि लेकर घूमते रहते हैं। सोमवार को भी पुष्कर रोड स्थित फुटपाथ पर कच्ची बस्ती में रहने वाले परिवार की युवतियां एवं किशोरियां नाली से सटे एक नल के रिसाव से बोतलें भर-भर के डिब्बे, कैन आदि में इक_ा करती मिलीं। यहां हालात यह थे कि नाली से गंदगी की दुर्गन्ध और युवतियां नाक व मुंह पर कपड़ा बांधकर पानी का संग्रहण करती मिलीं।
शहर के चहुंओर बसी कच्ची बस्तियों में रहने वाले परिवारों का ‘भविष्यÓ भी खतरे में हैं। नौनिहालों को पीने का पानी हों चाहे भोजन (food)पर्याप्त नहीं मिल रहा है। कई बस्तियों में तो बच्चे पानी के बंदोबस्त के लिए बोतलें एवं डिब्बे आदि लेकर घूमते रहते हैं। सोमवार को भी पुष्कर रोड स्थित फुटपाथ पर कच्ची बस्ती में रहने वाले परिवार की युवतियां एवं किशोरियां नाली से सटे एक नल के रिसाव से बोतलें भर-भर के डिब्बे, कैन आदि में इक_ा करती मिलीं। यहां हालात यह थे कि नाली से गंदगी की दुर्गन्ध और युवतियां नाक व मुंह पर कपड़ा बांधकर पानी का संग्रहण करती मिलीं।
ऑयल-डीजल के डिब्बों में भरकर रखते हैं पीने का पानी रिसाव से पानी भरकर यह परिवार ना तो मटके में पानी भरकर रखते हैं ना टंकियों में, ये परिवार ऑयल-डीजल आदि के डिब्बों में पानी भरकर इक_ा रखते हैं। इन डिब्बों की साफ सफाई भी नहीं होने से पानी दूषित होने का खतरा रहता है।
सुविधाएं मिलती नहीं करते हैं व्यवस्था कच्ची बस्तियों में रहने वाले परिवारों को किसी तरह की सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं। पानी भी आसपास के घरों से तो कहीं पेयजल लाइनों के रिसाव से पानी भरकर रखते हैं। बच्चों में बढ़ रहा है कुपोषण इन बस्तियों में बच्चों में कुपोषण की बीमारी भी लगातार बढ़ रही है। खासकर बच्चों के स्वास्थ्य (Helth)को लेकर जागरूकता भी महिलाओं में अभाव है। बच्चों को स्कूल व आंगनबाड़ी नहीं भेजने से ना तो दूध-दलिया मिल रहा है ना यह परिवार अपने स्तर पर व्यवस्था कर पा रहे हैं।