सिंधियों के शरणार्थी से पुरुषार्थी और फिर परमार्थी बनने के सफर के बारे मे सभी लोग भलिभांति परिचित हैं। मेहनत और व्यवसाय की पैदाइशी सूझबूझ की बदौलत भारत ही नहीं विश्व में जहां भी सिंधी रहते है वहां अपनी खास पहचान बना चुके हैं।
खैर यह तो हुई बीते जमाने की बात। आज बात करते हैं साधन संपन्न, शिक्षित और आधुनिकता के बीच रहने वाली सिंधियों की नई पीढ़ी की। दरअसल सिंधी समाज पिछले लगभग दो दशक से एक खास समस्या से जूझ रहा है। वह समस्या है उनकी अपनी पहचान सिंधी भाषा की।
सिंधियों के कमोबेश सभी पढ़े-लिखे परिवारों ने अंग्रेजी और हिंदी का ऐसा दामन पकड़ा कि उनकी अपनी भाषा ही लुप्त होती नजर आ रही है। गंभीर समस्या तो यह है कि मौजूदा समय में अधिकांश सिंधी घरों से ही सिंधी गायब हो चुकी है। ऐसे में छोटे बच्चों से लेकर जवानी की दहलीज पर कदम रख चुके सिंधी समाज के युवा वर्ग के लिए सिंधी लिखना तो दूर सिंधी में बात करना ही नामुमकिन होता जा रहा है।
ऐसा नहीं है कि बड़े बुजुर्गो ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। सिंधी में बात करने की उनकी सीख को नई पीढ़ी संकीर्णता और पुराने विचार की आड़ में लगातार नजरअंदाज करती रही।
हालात कितने विकट है इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते है कि परिवार में दादा-दादी, नाना-नानी का अपने ही पोते-पोती या नाती-नातिन से संवाद मुश्किल होता नजर आ रहा है। सीमित संख्या में बचे संयुक्त परिवारों में बड़े बुजुर्ग अब भी सिंधी में ही बात करते है जबकि उनके बेटे-बहू अपने बच्चो को पालने की उम्र से ही अंग्रेजी और हिंदी की घुट्टी पिलाने लग जाते हैं।
हालात कितने विकट है इसका अंदाजा इसी बात से लगा सकते है कि परिवार में दादा-दादी, नाना-नानी का अपने ही पोते-पोती या नाती-नातिन से संवाद मुश्किल होता नजर आ रहा है। सीमित संख्या में बचे संयुक्त परिवारों में बड़े बुजुर्ग अब भी सिंधी में ही बात करते है जबकि उनके बेटे-बहू अपने बच्चो को पालने की उम्र से ही अंग्रेजी और हिंदी की घुट्टी पिलाने लग जाते हैं।
खैर सिंधी भाषा के विकास के लिए भारतीय सिंधु सभा की ओर से बाल संस्कार शिविर लगाए जा रहे है। परिवारों में भी सिंधी में बात करने की जागरुकता पैदा की जा रही है। उम्मीद है भविष्य में बेहतर हालात बन सकेंगे।
अब आखिर में एक रोचक बात, क्या आप जानते है कि भारत से बाहर रहने वाले सिंधी समुदाय के लोग अपने घर अथवा अपने जान-पहचान वालों से सिंधी में बात करते हैं। अमरीका, दुबई, अफ्रीका, मॉरिशियस, हॉलैंड सहित अन्य देशों में रहने वाले सिंधियों को गैर भारतीयों के बीच अपनी सिंधी भाषा ही सुरक्षित भाषा नजर आती है इससे उनकी गोपनीयता भी बरकरार रहती है। तो क्या यह समझा जाए कि विदेशों में तो सिंधी भाषा पूरी तरह संरक्षित है लेकिन अपने ही देश में हालात विपरीत होते जा रहे हैं।
सिंधियत बचाने के प्रयास करने चाहिए विभाजन के बाद भारत में सरकारी सिंधी स्कूल खोले गए। सिंधी साहित्य भी उपलब्ध था। लेकिन नई पीढ़ी के मिशनरी स्कूलों के प्रति रुझान बढऩे से सिंधियत पर प्रतिकूल असर पडऩे लगा।
-कमला गोकलानी, सिंधी साहित्यकार सिंधी भाषा को वापस जुबान पर लाने के लिए छह साल से सिंधी बाल संस्कार शिविर आयोजित किए जा रहे है। इस बार 100 से अधिक शिविर लगाए गए हैं। बच्चों को सिंधी भाषा सिखाई जा रही है।
-महेन्द्र कुमार तीर्थाणी, राष्ट्रीय मंत्री, भारतीय सिंधु सभा सिंधी स्कूल बंद हो गए हैं। सिंधी भाषा को बचाने के लिए समाज व संस्थाओं को आगे आना होगा। सिंधी परिवारों को भी सिंधियत बचाने के प्रयास करने चाहिए।
-भगवान कलवानी, अध्यक्ष, सिंधी शिक्षा समिति