मगर जब मरणोपरांत देहदान करने परिजन पहुंचते हैं तो मृत्यु का कारण, चिकित्सक के मृत्यु प्रमाण-पत्र के नाम पर बाधाएं खड़ी कर दी जाती हैं। ऐसी ही स्थिति जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में पैदा हो गई। हालांकि बाद में अस्पताल प्रशासन ने परिजन से समझाइश कर देहदान करवा दिया।
अजमेर के क्रिश्चियनगंज निवासी संतोष सोनी के पिता रामनिवास सोनी (80) का रविवार शाम निधन हो गया था। पिता की इच्छानुसार परिजन ने सुबह जेएलएन मेडिकल कॉलेज के एनोटॉमी विभाग में संपर्क किया तो विभागाध्यक्ष ज्योत्सना जोशी ने मरणोपरांत देहदान का संकल्प-पत्र मांगा।
इसके अभाव में मौत का कारण एवं मृत्यु-प्रमाण पत्र मांगा। संतोष सोनी व परिजन ने बताया कि देहदान का संकल्प-पत्र तो नहीं लेकिन इस समय मृत्यु प्रमाण-पत्र कौन जारी करेगा। इस पर जोशी ने बताया कि प्राइवेट डॉक्टर से ही लिखवा लाओ।
परिजन ने कहा कि जब पूर्व में सरकारी अस्पताल में ही इलाज हुआ तो प्राइवेट डॉक्टर कैसे मौत की पुष्टि करेगा। मामला बिगडऩे लगा तो कॉलेज प्रिंसीपल डॉ. राजेन्द्र गोखरू ने अपना प्रतिनिधि भेज कर समझाइश की कोशिश की।
करीब 2 घंटे बाद परिजन व परिचित शववाहन में शव लेकर मेडिकल कॉलेज पहुंचे और देह डॉ. जोशी व डॉ. विकास अग्रवाल आदि के सुपुर्द की। कॉलेज प्रशासन की ओर से देहदान पर परिजन को धन्यवाद देते हुए कहा कि इससे अन्य लोगों को प्रेरणा मिलेगी। इस दौरान प्रिंसीपल डॉ. गोखरू, अस्पताल अधीक्षक, अतिरिक्त अधीक्षक आदि कोई भी जिम्मेदार अधिकारी मौजूद नहीं रहा।
अलग से चिकित्सक की हो व्यवस्था मृतक सोनी के परिजन का कहना रहा कि मेडिकल कॉलेज में जब कोई (बिना संकल्प-पत्र वाला) मरणोपरांत देह दान के लिए पहुंचे तो कॉलेज में भी एक चिकित्सक की व्यवस्था होनी चाहिए जो मृत घोषित कर प्रमाण-पत्र जारी कर सके, ताकि शोक संतप्त परिवार को कोई परेशानी न हो।
विभागाध्यक्ष ने मांगी क्षमा विभागाध्यक्ष जोशी ने देहदान करने वाले परिवार के सदस्यों के प्रति आभार जताया और कहा कि इससे अन्य लोगों को भी प्रेरणा मिलेगी। मगर सुबह हुई दो घंटे की परेशानी व प्रमाण-पत्र की अनिवार्यता पर चुप्पी साधते हुए हाथ जोड़ कक्ष में रवाना हो गईं।
छलक पड़ी आंखें कॉलेज के एनोटोमी विभागाध्यक्ष व चिकित्सकों को देह सुपुर्द करते वक्त दिवंगत सोनी की सबसे बड़ी बेटी कलावती देवी, पुत्र संतोष, सत्यप्रकाश एवं छोटी बेटी दयावती की आंखें छलक पड़ी। चिकित्सकों के अनुसार कॉलेज के विद्यार्थी शोध एवं अध्ययन के लिए देह का उपयोग करेंगे।
एनोटॉमी विभागाध्यक्ष की ओर से मिस कम्युनिकेशन रहा है तो जांच करवाएंगे। घर पर साधारण मौत के बाद देहदान करने की स्थिति में अंतिम बार जांच करने वाले चिकित्सक से वेरिफाई करवाना जरूरी है ताकि नेचुरल डेथ की पुष्टि हो सके। यह साधारण प्रक्रिया है।
-डॉ. राजेन्द्र गोखरू, प्रिंसीपल जेएलएन मेडिकल कॉलेज