वह अपने नाजुक हाथों से भारी-भरकम तोप में बारूद भर कर दागती है तो उसकी आवाज अजमेर के आस-पास स्थित गांवों तक जाती है। हम बात कर रहे हैं गरीब नवाज के दर पर खास मौकों पर तोप दाग कर खिदमत को अंजाम देने वाली फौजिया की। आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि फौजिया आज से नहीं बल्कि बचपन से ही विभिन्न रस्मों पर तोप दागने के कार्य को अंजाम दे रही है। इन दिनों रमजान में सेहरी और रोजा अफ्तार के वक्त फौजिया की तोप चला रही है।
ताउम्र तोप चलाने का संकल्प खास बात यह है कि फौजिया ने ताउम्र इसी तरह तोपची का कार्य कर ख्वाजा साहब की खिदमत करते रहने का प्रण भी लिया है। चांद का ऐलान हो या फिर नमाज का वक्त। ख्वाजा साहब की दरगाह में साल भर विभिन्न मौकों पर पास ही स्थित बड़े पीर की पहाड़ी से तोप की सलामी दी जाती है। एक तरफ तोप की आवाज आती है, दूसरी तरफ दरगाह में रस्म की शुरुआत होती है।
आठ वर्ष की उम्र से कर रही है यह काम करीब 35 वर्षीय फौजिया 8 साल की उम्र से ही तोप चलाने का कार्य कर रही है। फौजिया ने बताया कि उनका परिवार पिछली आठ पीढिय़ों से तोप चलाने का कार्य कर रहा है। पिछले 27 सालों से इस परम्परा को निभाने की जिम्मेदारी फौजिया के कंधों पर है। फौजिया के साथ उसके भाई मोहम्मद खुर्शीद, मोहम्मद रशीद और मोहम्मद रफीक भी तोप चलाने के कार्य को अंजाम देते हैं।
शादी नहीं की फौजिया ने तोप की गरज के साथ खेलने वाली फौजिया एक छोटी सी दुकान भी चलाती है, जिससे उनके घर का खर्चा चलता है। फौजिया ने शादी नहीं की है। फौजिया ने बताया कि तोप चलाने के बदले उसे कोई मेहनताना नहीं मिलता। हालांकि खास मौकों पर उसे नजराना मिलता है जिससे बारूद का खर्चा निकल जाता है। उसने बताया कि पहले पहियों वाली तोप हुआ करती थी, अब उसके पास 250 किलो वजनी तोप है। इसमें शिकार के काम आने वाला बारूद भरा जाता है। फौजिया ने बताया कि पहली बार जब उसने तोप चलाई थी, तब डर सा लगा थाए उसके बाद से वह निडर होकर तोप दागती है।
आस-पास के गांवों तक जाती है आवाज फौजिया जब तोप दागती है तो उसकी आवाज अजमेर ही नहीं बल्कि पास में स्थित गगवाना गांव तक सुनाई देती है। फौजिया ने बताया कि पहले मौरूसी अमले के लोग दरगाह से लाल रंग का झंडा दिखाते थेए उसे देख कर वह तोप चलाती थी। अब मोबाइल फोन का जमाना आ गया है। उसे मोबाइल पर तोप चलाने के लिए कह दिया जाता है। हालांकि उसके पास वर्ष भर का टाइम टेबल हैए जिसे देखकर वह वक्त पर तोप चलाने का कार्य कर देती है।
साल में 290 तोपों की सलामी चांद दिखने पर कभी 3 बार तो कभी 5 बार तोप दागी जाती है। उर्स के झंडे की रस्म के दौरान 21 तोप, उर्स की छठी पर 6 तोपों की सलामी दी जाती है। रमजान के महीने में सेहरी के वक्त और सेहरी खत्म होने पर भी रोजाना एक-एक बार तोप चलाई जाती है। इस तरह साल भर में कुल 290 तोपों की सलामी फौजिया देती हैं