अजमेर जिला मुख्यालय से करीब 12 किमी दूर स्थित पदमपुरा आज भी नीम के गांव के नाम से प्रसिद्ध है। गुर्जर बाहुल्य गांव में बरसों से परंपरा है कि कोई भी नीम के पेड़ को न तो काटेगा न ही छांगेगा। इससे पहाड़, जंगल,खेत, घर के परिसर, सड़क के दोनों छोर पर नीम के सघन पेड़ हैं। पत्रिका टीम गुरुवार को पदमपुरा गांव पहुंची, जहां फिजिकली थर्मामीटर से तापमान मापा तो करीब 37 से 38 डिग्री आया। जबकि अजमेर शहर एवं समीपवर्ती माकड़वाली गांव में तापमान 44 डिग्री था।
गर्मी में पेड़ों के नीचे शरण
भीषण गर्मी में घरों के बाहर नीम के पेड़ों के नीचे खाट लगाकर लोग विश्राम करते मिले। कुछ बच्चे पढ़ाई करते मिले। महिलाएं, ग्रामीण ही नहीं मवेशियों के लिए भी नीम के पेड़ शरणगाह नजर आए। ग्रामीण माधूराम ने बताया कि उनके दादा से पहले ही गांव में परंपरा चल रही कि न नीम का पेड़ काटेंगे, न ही छांगेंगे। शाम को नीम के पेड़ों के नीचे अलग ही गंध महसूस की जाती है।
न कोई पॉजिटिव न हुई मौत
गांव के समाजसेवी जसराज गुर्जर ने बताया नीम के पेड़ों का सबसे बड़ा फायदा कोरोना के समय दिखा। गांव में कोई पॉजिटिव केस नहीं था न ही कोई मौत हुई थी।
2000 की आबादी, 5000 से अधिक पेड़
सरपंच संजू देवी व जसराज के अनुसार गांव में वर्तमान में करीब 350 घर हैं। यहां की आबादी करीब 2000-2200 है। वर्ष 2011 की जनगणना में 900 की आबादी थी।
जुर्माना : कबूतरों को खिलाओ दाना
ग्रामीणों के अनुसार अगर गांव में गलती से भी किसी ने पेड़ को काटा या कुल्हाड़ी चलाई तो मंदिर में बैठकर ग्रामीण जुर्माना तय करते हैं। जुर्माना कबूतरों के दाना-पानी का ही होता है। अगर कोई खेती की जमीन खरीदता है तो शर्त रहती है कि कोई नीम का पेड़ नहीं काटेगा।