पुष्कर का वातावरण आध्यात्मिक और शांति प्रदान करने वाला है। यहां पर आपको साधु-संतों की उपस्थिति और भक्ति गीतों की गूंज सुनाई देगी। इस स्थान पर यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं को न केवल धार्मिक अनुभव होता है, बल्कि वे स्थानीय संस्कृति और परंपराओं का भी अनुभव कर सकते हैं। पुष्कर में अनेक मंदिर भी हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख हैं, राधा-कृष्ण मंदिर, महादेव मंदिर और सावित्री देवी मंदिर। सावित्री देवी मंदिर पहाड़ी पर स्थित है और यहां से पुष्कर झील का सुंदर दृश्य दिखाई देता है।
पुष्कर नवंबर में घूमने के लिए सबसे बेहतरीन जगह में से एक है क्योंकि इस महीने यहाँ दुनिया का सबसे बड़ा ऊंट मेला आयोजित होता है। 2 नवंबर से शुरु होने वाले इस मेले के दौरान सैलानी यहां का इतिहास और सांस्कृतिक विरासत को अच्छे से देख सकते हैं। यदि आप भी पुष्कर मेला घूमने जाने का प्लान कर रहे है तो हम आपको बताएंगे यहां से जुड़ी अहम जानकारियां।
पुष्कर मेला कहां और कब होगा
पुष्कर मेला जिसे पुष्कर ऊंट मेला भी कहा जाता है। इस मेले का इतिहास करीब 100 साल पुराना है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक पूर्णिमा के दिन पुष्कर झील के किनारे मेला आयोजित किया जाता है। यह स्थान विशेष रूप से भगवान ब्रह्मा के मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। पुष्कर मेले में बड़ी तादाद लोग पहुंचते हैं। यहां देश के साथ-साथ विदेश से भी बड़ी संख्या में सैलानी आते हैं। पुष्कर अजमेर से 11 किलोमीटर है। यह सबसे बड़ा पशु मेला भी है। इस साल यह मेला 2 नवंबर से 17 नवंबर तक आयोजित होगा। रेगिस्तान की वजह से पुष्कर मेले में ऊंट का भी महत्व बढ़ जाता है। इस मेले की खास बात यह है कि यहां पर्यटकों के लिए विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है जो विशेष आकर्षण का केंद्र बनती है। दुनियाभर से आए पर्यटक इस मेले में ऊंटों की दौड़, स्थानीय हस्तशिल्प और पारंपरिक संगीत-नृत्य का आनंद लेते हैं।
ऊंटों के आभूषणों की कीमत 200 से 12000 हजार रुपए तक
ऊंटों को बेहतरीन तरह से सजाया जाता है। उनका ब्यूटी कॉन्टेस्ट और डांस भी होता है। इसके अलावा यहां कई नृतक, गायक, जादूगर और सपेरे भी हिस्सा लेते हैं। ऊंट का सबसे पहले गले का श्रृंगार होता है। इसमें गोरबंद का इस्तेमाल किया जाता है। गले में ही चांदी और जरी की कसीदाकारी पट्टियां भी लगाई जाती हैं। पैरों में नवरिया, मणियों से बनी पाईजेब, नकली मोती व घुंघरू का उपयोग किया जाना है। नाक और मुंह पर नकेल मोरा ,मोरी का प्रयोग किया जाता हैं। ऊंट की गर्दन को सजाने के लिए मणियों की माला, गजरा, टोकरी, घंटी व लाल कलर के डिजाइनदार कपड़े से सजाया जाता हैं। ऊंट के पीठ के ऊपरी कूबड़ निकला हुआ होता हैं उसको सजाने के लिए पड़ची ,काठी व जाली का श्रृंगार किया जाता हैं। आभूषणों की कीमत 200 से 12000 हजार रुपए तक होती है।