अजमेर

कमाल की है अल्लाह के बंदों की यह कारीगरी, उर्स के कई महीनों पहले करते हैं यह तैयारी

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के उर्स में हजारों जायरीन अपनी-अपनी मुराद आते हैं। मजार शरीफ पर गुलाब के फूलों के साथ चादर पेश करते हैं। यह चादरें अकीदतमंद की भावना और गरीब नवाज के प्रति आस्था का प्रतीक होती हैं।

अजमेरApr 03, 2017 / 10:27 am

raktim tiwari

pilgrims makins chadar

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के उर्स में हजारों जायरीन अपनी-अपनी मुराद आते हैं। मजार शरीफ पर गुलाब के फूलों के साथ चादर पेश करते हैं। यह चादरें अकीदतमंद की भावना और गरीब नवाज के प्रति आस्था का प्रतीक होती हैं।
ख्वाजा साहब की दरगाह में पेश करने वाली चादर अधिकांश जायरीन अपने हाथों से बनाते हैं। इनमें से हैदराबाद और नागपुर से आने वाले जायरीन उर्स से कई माह पूर्व चादर बनाना शुरू कर देते हैंं। इनको बनाने में काफी वक्त और मेहनत लगती है। जायरीन अजमेर में किंग एडवर्ड मेमोरियल में पूरे दल-बल के साथ ठहरते हैं। 
वे प्रतिवर्ष धूमधाम से ढोल ताशों के साथ चादर को सजाकर दरगाह बाजार जाते हैं। यह जुलूस लगभग 4 से 5 घंटे में दरगाह पहुंचता है। हैदराबाद से आए एक जायरीन दल ने पत्रिका से इस बारे में बातचीत की।
तीन महीने पहले शुरू होता काम

उर्स में आने के तीन महीने पहले से चादर तैयार करने का काम शुरू हो जाता है। परिवार और दल के सभी सदस्य मिलकर दो माह में चादर को तैयार करते हैं। चादरों को बनाने में कपड़ा, वेलवेट, गोटा, जरी, चमकी, चांद सितारों और बहुत सारी सामग्री का प्रयोग होता है ।
बुलाते हैं खास कारीगर कई लोग चादरें बनाने के लिए लिए विशेष कारीगरों को बुलाते हैं। इसकी एवज में मेहनताना दिया जात है।कई लोग खुद और परिवार के साथ चादर बनाते हैं। चादरों पर गरीब नवाज का नाम एवं कलमा लिखते हैं । कई जगह पैगंबर हजरत मोहम्मद का नाम भी लिखते हैं। विभिन्न चांद सितारों की डिजाइन एवं गुंबद मुबारक की डिजाइन बनाई जाती है।

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