अजमेर. राज्य कर्मचारियों के संवेतन सहित कई अन्य मदों की राशि के बिल बजट आवंटन के अभाव में अब नहीं रुकेंगे। आहरण-वितरण अधिकारी (डीडीओ) अपने दफ्तरों के बिल सीधे ही कोषालय को भेज सकेंगेे। जहां संबंधित विभाग के लिये राज्य सरकार द्वारा पूर्व में जारी की गयी समेकित राशि में से उन्हें भुगतान कार्यवाही हेतु पारित किया जाता रहेगा। यह व्यवस्था राज्य सरकार द्वारा नये वित्तीय वर्ष से लागू की गयी सुगम समेकित पूल बजट के तहत की गयी है। इस व्यवस्था से अधीनस्थ कार्यालयों को अपने विभागीय मुख्यालयों से बजट आवंटन की निर्भरता खत्म होने के साथ ही कर्मचारियों को भी राहत मिलेगी। हालांकि लेका संवर्ग के वरिष्ठ अधिकारी इस व्यवस्था को कालांतर में कई मायनों में विषमता और प्रशासनिक दृष्टि से दुविधा पैदा करने वाली मान रहे हैं।
इन मदों में मिलेगा पूल बजट सरकारी विभागों के लिये संबंधित कोषालयों में वेतन, पेंशन, यात्रा-भत्ता, चिकित्सा व्यय, मजदूरी, टेेलीफोन, पानी-बिजली. किराया आदि के मदों में सुगम समेकित पूल बजट उपलब्ध रहेगा। इसके अलावा अन्य विस्तृत मदों में व्यय के सरकारी बिल विभाग द्वारा पूर्व प्रक्रियानुसार जारी की जाने वाली प्रशासनिक एवं वित्तीय स्वीकृति के बाद ही पारित किये जायेंगे।
चालू वित्तीय वर्ष से प्रभावी वित्त विभाग ने 1 अप्रेल से राज्य के सभी विभागों के लिये प्रदेश के समस्त कोषालयों को चालू वर्ष का सुगम समेकित पूल बजट जारी कर दिया है। जब तक संबंधित विभाग के खाते में किसी मद विशेष का समेकित पूल बजट उपलब्ध रहेगा, उसके बिल ट्रेजरी से पारित होते रहेंगे।
पहले आओ, पहले पाओ. . . नयी व्यवस्था का फायदा आहरण-वितरण अधिकारियों को पहले आओ, पहले पाओ की तर्ज पर होगा। यानी जो डीडीओ अपने दफ्तर के संबंधित मद के बिल पहले ट्रेजरी को फॉरवर्ड कर देंगे उनके बिल पहले पारित होकर भुगतान हो सकेगा। यह सिलसिला संबंधित विभाग का उस मद में पूल बजट कोषालय में उपलब्ध रहने तक बरकरार रहेगा।
कर्मचारियों को मिलेगी राहत राज्य सरकार द्वारा लागू की गयी नयी व्यवस्था को राज्य कर्मचारियों के हित में सकारात्मक पहल माना जा रहा है। सरकारी कार्यालयों में सबसे बड़ी समस्या कर्मचारियों के सालों से बकाया यात्रा व मेडिकल बिलों की है। इन मदों में भुगतान की पेंडेंसी लाखों रुपये की चल रही है। सालों-साल से अधीनस्थ कार्यालयों के विभागीय मुख्यालयों से संबंधित मदों का बजट नहीं मिलने से बिल पेंडिंग पड़े हैं। हजारों कर्मचारी इसी बीच सेवानिवृत भी हो जाते हैं। जिसके बाद वे अपने बकाया बिलों के लिये दफ्तरों के चक्कर काटने को विवश रहते थे। बकाया बिलों के लिये कई अदालतों में मामले भी चल रहे हैं। नयी व्यवस्था से ऐसे मामलों में राहत मिलना माना जा रहा है।
बढे़गी परेशानी. . .!उधर, लेखा संवर्ग के वरिष्ठ अधिकारी इस व्यवस्था से इत्तफाक नहीं रखते। अधिकारियों का कहना है कि इस तरह की मांग प्रदेश में किसी भी स्तर से नहीं की गयी थी। अभी तक जो व्यवस्था प्रचलित थी उसमें बजट के आवंटन, उपयोग और व्यय के औचित्य पर विभागाध्यक्ष स्तर पर पूरी निगाह रखी जाती थी। जहां कटौती की जानी होती वहां कटौती की जाकर खर्चोंं को नियंत्रित भी किया जा सकता था। लेकिन नयी व्यवस्था से यह प्रक्रिया खुद सरकार के स्तर पर ध्वस्त की जाती प्रतीत हो रही है।
ि