जवाहरलाल नेहरू अस्पताल का फोरेंसिक मेडिसिन विभाग बीते 5 माह से नशा मुक्ति केन्द्र में संचालित है। ऐसे में मेडिकल के लिए आने वाली निर्भया की मेडिकल जांच के लिए पृथक से कोई सुरक्षित जगह नहीं है। हालात ऐसे हैं कि पीडि़ता को आपातकालीन इकाई में बैठकर जिल्लत भोगनी पड़ती है। जिससे यहां आने-जाने वाले अन्य मरीज व मेडिकल स्टाफ के सामने पीडि़ता की पहचान उजागर होने की संभावना बनी रहती है। लेकिन अस्पताल प्रशासन इन हालात को लेकर गम्भीर नहीं है।
आवंटित कक्षों पर ताले
करीब एक माह पहले अस्पताल प्रशासन ने ‘निर्भया सेंटर’ के लिए मेडिसिन विभाग के सहआचार्य डॉ. सुनिल गोठवाल का कमरा फोरेंसिक मेडिसिन विभाग को आवंटित किया था। लेकिन आवंटन के पश्चात प्रशासनिक अड़चनें बताकर मौखिक आदेश पर कमरे पर लगाए गए ताले अब तक नहीं खोले गए हैं। नतीजतन पांच माह बाद भी अस्पताल प्रशासन निर्भया के लिए कोई सुरक्षित कक्ष नहीं दे सका है।
खस्ता हाल में पहुंचा सेंटर
सुप्रीम कोर्ट ने जिला स्तर के प्रत्येक अस्पताल में बलात्कार पीडि़ता की सुरक्षा के लिए व पहचान उजागर से बचाने को फोरेंसिक मेडिसिन विभाग को निर्भया सेंटर स्थापित करने के आदेश दिए थे। जेएलएन अस्पताल के फोरेंसिक मेडिसिन विभाग में बना निर्भया सेंटर मानसून में छत टपकने से खस्ताहाल है।
यह होनी चाहिए सुविधा
अस्पताल में सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन अनुसार निर्भया सेंटर वातानुकूलित(एसी) होना चाहिए। उसमें पीडि़ता व चिकित्सकों के बैठने के लिए पर्याप्त व्यवस्था, वॉशरूम, सोफा और वाटर कूलर की सुविधा होनी चाहिए।
इनका कहना है…
मेडिकल के लिए अस्पताल में पृथक से निर्भया सेंटर बनाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की गाइड लाइन है। संभाग के सबसे बड़े अस्पताल में निर्भया सेंटर नहीं होना गम्भीर है। अंजलि शर्मा, जिलाध्यक्ष सीडब्ल्यूसी अजमेर निर्भया सेंटर के लिए फोरेंसिक मेडिसिन विभाग को दो कमरे आवंटित किए थे लेकिन विभाग ने अब तक कमरे पजेशन में नहीं लिए हैं। डॉ. अरविन्द खरे, अधीक्षक जेएलएन अस्पताल