जलकुंभी हटाने को लेकर पिछले कुछ सालों में लाखों रुपए खर्च किए गए, इसके बावजूद यह दिन दुनी व रात चौगुनी बढ़ती गई। अब तो नगर परिषद के लिए जलकुंभी को निकालना बूते से बाहर होता जा रहा है। बिचड़ली तालाब में आने वाले नालों के पानी को रोकने, अवैध अतिक्रमण को रोकने एवं इसके वजूद को बचाए रखने के लिए कई योजनाएं बनी लेकिन फलीभूत एक भी नहीं हुई।
इसके अलावा भजनकुंड को संवारने की योजना भी बनी लेकिन यह योजना भी कागजों तक सिमट कर रह गई। तालाब के चारों ओर लाइटें लगाने को लेकर भी प्रयास हुए लेकिन सफलता नहीं मिली। अब तो हालात यह है कि जलकुंभी निकालने में नगर परिषद प्रशासन सफल नहीं हो पा रहा है।
प्रवासी पक्षियों की घटती गई संख्या विज्ञान क्लब के स्कूली छात्रों की ओर से वर्ष 2008 से बिचड़ली तालाब का सर्वे किया गया। इसमें नवम्बर 2008 से फरवरी 2009 तक 104 प्रवासी पक्षी नजर आए, जबकि 2009 मार्च से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक 92 प्रवासी पक्षी नजर आए। इस सर्वे में अप्रवासी पक्षियों की संख्या भी औसत 932 से घटकर 900 रह गई है। जलकुंभी के चलते इस बार तो गिने-चुने ही प्रवासी पक्षी पहुंचे। इन्होंने भी कुछ दिनों बाद आस-पास के अन्य तालाबों में अपना डेरा जमा लिया।
इन पक्षियों का रहता था डेरा बिचड़ली तालाब आने वाले पक्षियों में पनडुब्बी (डेवचिक) आरी (कूट), सीखपर (पिनटेल), फ्लेमिगो, बगुला, हवाशील (पेलिकन-पेण), किंगफिशर (पाइड), जल चिडिय़ा (जेकाना पिहूया), सारसक्रेन, टिटहरी, स्टाईल्ड, पेटेड स्टॉर्क (जान्हिल), के्रन (कुरजां) एवं डोमेसायल के्रन शामिल है। जलकुंभी के कारण इनकी संख्या कम होती जा रही है।
गंदगी ने तोड़ा इन पक्षियों का दिल पेटेड स्टॉक (जान्हिल), के्रन (कुरजा) एवं डोमेसायल क्रेन का यहां प्रवास बिल्कुल बंद हो गया है, जबकि फ्लेमिंगो, हवाशील (पेलिकन-पेण), सारस के्रन की संख्या गिनी-चुनी रह गई है। ये पक्षी भी पर्याप्त भोजन नहीं मिलने व गंदगी के चलते जल्दी ही यहां से विदाई ले लेते हैं।
बिचड़ली तालाब से जलकुंभी हटाने के लिए प्रक्रिया चल रही है। इसके लिए
उदयपुर की एक फर्म को पत्र लिखा गया है। जल्द ही जलकुंभी निकालने के प्रयास किए जाएंगे।
बबीता चौहान, सभापति, नगर परिषद