साहित्यकला, संस्कृति एवं इतिहास के केंद्र बिन्दु अजमेर से 22 किलोमीटर दूर सुरम्य भूमि के उन्मुक्त अंचल मे अरावली पर्वत मालाओं के बीच 20 नवम्बर 1818 को अंग्रेज जनरल सर डेविड ऑक्टर लॉनी उर्फ नसीरूददौला ने नसीराबाद को बसाया। नसीरूद्दौला के नाम पर ही छावनी का नाम नसीराबाद रखा गया था। मुगल शासक शाह आलम ने ऑक्टर लॉनी को नसीरूद्दौला की उपाधि दी थी तथा अंग्रेज ब्रिगेडियर नॉक्स ने नगर में सैन्य छावनी की स्थापना की। प्रथम स्वंतत्रता संग्राम 1857 से पूर्व सन 1818 में जब राजपुताना की समस्त देसी रियासतें अंग्रेजों के शासन अधिकार में आ गई। तब अंग्रेजों ने व्यवस्था कायम रखने के उद्देश्य से शहरों के निकट सैनिक छावनियों की स्थापना की थी। इसी के तहत अजमेर के निकट नसीराबाद मे सैन्य छावनी बसायी गयी थी।
18 जून 1847 में दी अंग्रेजों को चुनौती जवाहरसिंह एवं डूंगरसिंह उर्फ डूंगरी डाकू ने ब्रिटिश विरोधी लोगों के सहयोग से 18 जून 1847 को नसीराबाद छावनी पर सफल आक्रमण कर ब्रिटिश खजाने एवं शस्त्रागारों को लूट लिया। गार्ड हाउस में आग लगा दी और उन्होंने अंग्रेजी शासन को चुनौती देते हुए अंग्रेजी गार्ड को मार गिराया। इन देशी प्रेमी दस्युओं की वीरता के गीत भाट, चारण आज भी गाते हैं।
ऐसे हुआ विद्रोह का शंखनाद सन् 1857 में नसीराबाद, नीमच, देवली और एरिनपुर मे फौजी मुकाम थे। उस समय नसीराबाद में दो रेजीमेंट भारतीय तोपखाना और फस्र्ट मुंबई लांसर के सैनिक थे। 10 मई को मेरठ छावनी में विद्रोह भड़क उठा। इस विद्रोह का समाचार नसीराबाद में भी पहुंच गया और 28 मई 1857 की दोपहर 3 बजे ब्रिटिश सेना के भारतीय दस्ते के सैनिकों ने विद्रोह का झंडा गाड़कर राजपुताना में नसीराबाद से विद्रोह की शुरुआत कर दी।
नष्ट किया स्वतंत्रता संग्राम का रिकॉर्ड सन् 1862 में विलियम मार्टिन व उसके भाई गोविन मार्टिन चर्च ऑफ स्कॉटलैंड के यूनाइटेड प्रेसबिटेरियन मिशन के द्वारा भेजे गये प्रचारक आये तथा उन्होंने यहां गिरजाघर तथा मिशन स्कूल की स्थापना की। सैनिक छावनी का 1818 से 1857 तक का समस्त रिकॉर्ड स्वतंत्रता संग्राम 1857 में नष्ट कर दिया था।
यह बदला स्वरूप छावनी का प्रशासन 1899 में बने केन्टोन्मेंट एक्ट के अनुसार संचालन किया जाता था। बाद में सन् 1924 में संशोधित करके अधिनियम बनाकर किया जाने लगा। अगस्त 1947 को केन्टोन्मेंट बोर्ड की स्पेशल बैठक बुलवाई। उस समय छावनी में सात वार्ड थे जिनके सात प्रतिनिधि छावनी बोर्ड के निर्वाचित सदस्य कहलाते थे तथा सेना का स्टेशन कमांडर छावनी परिषद का पदेन अध्यक्ष परिषद का अधिशासी अधिकारी पदेन सचिव और इसके अतिरिक्त 6 सेना के वरिष्ठ अधिकारी, विधायक, सांसद एवं उपखंड अधिकारी मनोनीत सदस्य होते थे। वर्तमान में छावनी में 8 वार्ड बन गये हैं और छावनी परिषद का संचालन संशोधित छावनी अधिनियम 2006 के तहत संचालित होता है।
इन प्रतिभाओं ने बिखेरी चमक नसीराबाद के लोगों की अंग्रेजी शासनकाल से ही फुटबाल के प्रति रूचि रही है। राजोरिया जॉर्ज, फ्रेंक, समद, सुरेश बनर्जी, मोहनसिंह, नासिर, नूर मोहम्मद आदि ने राष्ट्रीय स्तर तक शहर का नाम गौरवान्वित किया है। आजादी के बाद नसीराबाद क्षेत्र के विधायक सन् 1947 में ज्वाला प्रसाद शर्मा, विजयसिंह रावत, शंकरसिंह रावत, भंवरलाल ऐरन एवं गोविन्दसिंह गुर्जर, महेन्द्रसिंह गुर्जर, सांवरलाल जाट तथा वर्तमान में रामनारायण गुर्जर ने विधायक का दायित्व संभाला।
परिषद के उपाध्यक्ष पद पर सन् 1954 से कल्याणमल चौकड़ीवाल, नूर मोहम्मद, ताराचंद, एस.एम. गोयल, मोहम्मद शरीफ, माणकचंद जैन, गोविन्दसिंह गुर्जर, छीतरमल यादव, नाथूसिंह यादव, प्रेम कुमार गोयल, राजेन्द्र गोयल, विष्णु प्रसाद चौकड़ीवाल, जसवंतसिंह गुर्जर, माणकचंद खींची, राजेन्द्र प्रसाद गर्ग व वर्तमान मे योगेश सोनी है। नसीराबाद वार्ड संख्या 6 के सुत्तरखाना मौहल्ला निवासी गोविन्दसिंह गुर्जर ने नसीराबाद से 6 बार विधायक सीट पर जीत दर्ज कर प्रदेशभर में कीर्तीमान कायम किया था बाद मे पुड्डूचेरी के उपराज्यपाल बनकर नसीराबाद का ही नहीं वरन् अजमेर जिले का नाम देश के दक्षिणी छोर तक गौरवान्वित किया।
प्रदेश में विशिष्ट स्थान नसीराबाद में 1922 में रामसर रोड पर पन्नालाल पीतल्या उर्फ पन्नालाल पागल ने नृसिंह गोशाला, 13 फरवरी 1921 में व्यापारिक स्कूल की मूलचंद रखूंडिया अग्रवाल ने, 1890 में आर्य समाज, 1923 में डीएवी स्कूल, 1920 में परमार्थ वैश्य औषधालय की स्थापना की। नसीराबाद का कचौरा और चॉकलेट बर्फी भी अपनी विशेष पहचान रखते हंै। मात्र 325.25 एकड़ नागरिक क्षेत्र और 5440.17 एकड़ सेना क्षेत्र वाला नसीराबाद प्रदेश मे ही नहीं वरन् देश मे भी अपनी विशेष पहचान बना चुका है।