लॉ कॉलेज की एक हसरत अधूरी रह गई। यहां तत्कालीन कुलपति प्रो. विजय श्रीमाली ने कॉलेज विकास समिति की बैठक में जाने का फैसला किया था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। इसके चलते कॉलेज के हालात वहीं के वहीं हैं।
प्रदेश में वर्ष 2005 में 15 लॉ कॉलेज स्थापित हुए थे। इनमें अजमेर भी शामिल है। कॉलेज को बार कौंसिल ऑफ इंडिया से स्थाई मान्यता नहीं मिल पाई है। कॉलेज को हर साल महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय से सम्बद्धता लेनी पड़ती है। बाद सम्बद्धता पत्र और निरीक्षण रिपोर्ट बार कौंसिल को भेजी जाती है। इसके बाद प्रथम वर्ष में प्रवेश होते हैं। लॉ कॉलेज में 13 साल में पर्याप्त स्टाफ नहीं है। यहां प्राचार्य सहित छह शिक्षक हैं। एक मंत्रालयिक कर्मचारी डेप्युटेशन पर जयपुर तैनात है। उसकी पगार कॉलेज से उठ रही है। कॉलेज में शारीरिक शिक्षक, खेल मैदान, सभागार, और अन्य सुविधाएं नहीं हैं।
कुलपति नहीं जा सके मीटिंग में
कॉलेज विकास समिति की बैठक पिछले साल हुई थी। इसमें कुलपति प्रो. विजय श्रीमाली भी जाने वाले थे। लेकिन इससे पहले ही उनका निधन हो गया है। ऐसे कॉलेज की चारदीवारी, खेल मैदान और अन्य संसाधनों के विकास का सपना अधूरा रह गया।
कॉलेज विकास समिति की बैठक पिछले साल हुई थी। इसमें कुलपति प्रो. विजय श्रीमाली भी जाने वाले थे। लेकिन इससे पहले ही उनका निधन हो गया है। ऐसे कॉलेज की चारदीवारी, खेल मैदान और अन्य संसाधनों के विकास का सपना अधूरा रह गया।
नहीं बन सका संगठक कॉलेज
1 अगस्त 1987 को स्थापित महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय का कोई संघठक कॉलेज नहीं है। जबकि राज्य में राजस्थान विश्वविद्यालय, उदयपुर के एम.एल. सुखाडिय़ा और जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के संगठक कॉलेज हैं। मदस विश्वविद्यालय ने लॉ कॉलेज की बदहाली को देखते हुए इसका अपना संगठक कॉलेज बनाने की योजना बनाई थी।
1 अगस्त 1987 को स्थापित महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय का कोई संघठक कॉलेज नहीं है। जबकि राज्य में राजस्थान विश्वविद्यालय, उदयपुर के एम.एल. सुखाडिय़ा और जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के संगठक कॉलेज हैं। मदस विश्वविद्यालय ने लॉ कॉलेज की बदहाली को देखते हुए इसका अपना संगठक कॉलेज बनाने की योजना बनाई थी।