प्रदेश में विधि शिक्षा की जमकर धज्जियां उड़ रही हैं। लॉ कॉलेज के सम्बद्धता को लेकर कहीं विश्वविद्यालय के एक्टरोड़ा बने हुए हैं, तो कहीं लचीला रुख अपनाया गया है। उधर यूजीसी में पंजीयन नहीं होने से लॉ कॉलेज विकास योजनाओं के बजट को तरस रहे हैं।
वर्ष 2005-06 में प्रदेश में 15 लॉ कॉलेज स्थापित हुए। इनमें अजमेर, बीकानेर भीलवाड़ा, सीकर, नागौर, सिरोही, बूंदी, कोटा, झालावाड़ और अन्य कॉलेज शामिल हैं। किसी भी कॉलेज को बार कौंसिल ऑफ इंडिया से स्थाई मान्यता नहीं मिल पाई है। सभी कॉलेज को प्रतिवर्ष संबंधित विश्वविद्यालय का सम्बद्धता पत्र, निरीक्षण रिपोर्ट और पत्र भेजना पड़ता है। इसके बाद प्रथम वर्ष के दाखिले होते हैं।
विश्वविद्यालय कर रहे भेदभाव
प्रदेश के सभी 15 लॉ कॉलेज अलग-अलग विश्वविद्यालयों के क्षेत्राधिकार में हैं। विश्वविद्यालय अपने एक्ट और स्वायत्तशासी संस्था होने के नाते सम्बद्धता मामले में भेदभाव कर रहे हैं। बीकानेर के महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय अपने क्षेत्राधिकार के श्रीगंगानगर, चूरू और बीकानेर लॉ कॉलेज को स्थाई सम्बद्धता जारी कर चुका है। इन कॉलेज को प्रतिवर्ष सम्बद्धता लेने की जरूरत नहीं है। वहीं महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय अपने क्षेत्राधिकार के अजमेर, भीलवाड़ा, नागौर और टोंक के लॉ कॉलेज से भेदभाव कर रहा है। विश्वविद्यालय प्रतिवर्ष मोटी रकम वसूलने के बावजूद अस्थाई सम्बद्धता जारी करता है। स्थाई सम्बद्धता को लेकर कोई कुलपति फैसला नहीं कर पाया है।
प्रदेश के सभी 15 लॉ कॉलेज अलग-अलग विश्वविद्यालयों के क्षेत्राधिकार में हैं। विश्वविद्यालय अपने एक्ट और स्वायत्तशासी संस्था होने के नाते सम्बद्धता मामले में भेदभाव कर रहे हैं। बीकानेर के महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय अपने क्षेत्राधिकार के श्रीगंगानगर, चूरू और बीकानेर लॉ कॉलेज को स्थाई सम्बद्धता जारी कर चुका है। इन कॉलेज को प्रतिवर्ष सम्बद्धता लेने की जरूरत नहीं है। वहीं महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय अपने क्षेत्राधिकार के अजमेर, भीलवाड़ा, नागौर और टोंक के लॉ कॉलेज से भेदभाव कर रहा है। विश्वविद्यालय प्रतिवर्ष मोटी रकम वसूलने के बावजूद अस्थाई सम्बद्धता जारी करता है। स्थाई सम्बद्धता को लेकर कोई कुलपति फैसला नहीं कर पाया है।
यूजीसी से नहीं पंजीकृत यूजीसी के नियम 12 (बी) और 2 एफ के तहत सभी कॉलेज और विश्वविद्यालयों को पंजीकृत किया जाता है। यह पंजीयन संस्थाओं में शैक्षिक विभाग, शिक्षकों और स्टाफ की संख्या, भवन, संसाधन, सह शैक्षिक गतिविधियों और अन्य आधार पर होता है। इसमें पंजीकृत कॉलेज-विश्वविद्यालयों को विकास कार्यों, शैक्षिक कॉन्फे्रंस, कार्यशाला, भवन निर्माण के लिए बजट मिलता है। अजमेर, नागौर, भीलवाड़ा और नागौर लॉ कॉलेज के यूजीसी के नियम 12 (बी) और 2 एफ में पंजीकृत नहीं है। इसके चलते विकास के लिए बजट और नेक ग्रेड के लिए आवेदन करना मुश्किल है।
नहीं बना विधि शिक्षा का कैडर
मेडिकल, तकनीकी और उच्च शिक्षा की तरह विधि शिक्षा का पृथक कैडर नहीं बन सका है। विधि शिक्षा में करीब 120 शिक्षक कार्यरत हैं। लॉ कॉलेज में स्थाई प्राचार्य का पद सृजित नहीं है। इनमें शुरुआत से वरिष्ठतम रीडर को ही कार्यवाहक प्राचार्य बनाया जा रहा है। 7-8 शिक्षक तो सियासी रसूखात के चलते विश्वविद्यालयों और कॉलेज शिक्षा निदेशालय में पदस्थापित हैं।
मेडिकल, तकनीकी और उच्च शिक्षा की तरह विधि शिक्षा का पृथक कैडर नहीं बन सका है। विधि शिक्षा में करीब 120 शिक्षक कार्यरत हैं। लॉ कॉलेज में स्थाई प्राचार्य का पद सृजित नहीं है। इनमें शुरुआत से वरिष्ठतम रीडर को ही कार्यवाहक प्राचार्य बनाया जा रहा है। 7-8 शिक्षक तो सियासी रसूखात के चलते विश्वविद्यालयों और कॉलेज शिक्षा निदेशालय में पदस्थापित हैं।