अजमेर

हिंदू कारीगरों की बनाई चादर से सजता है ख्वाजा का दर

अजमेर से बाहर भी बनती है चादरें

अजमेरFeb 29, 2020 / 04:38 pm

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हिंदू कारीगरों की बनाई चादर से सजता है ख्वाजा का दर

अजमेर. सूफी संत ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह सदियों से पूरे विश्व में भाइचारे और साम्प्रदायिक सद्भाव का प्रतीक मानी जाती है। ख्वाजा साहब की मजार शरीफ पर चढ़ाई जाने वाली मखमली चादरें भी खुद में ऐसी ही खुशबू और रंग समेटे रहती हैं। ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह पर फूलों के साथ मखमली चादर चढ़ाने की रस्म होती है। यह ख्वाजा साहब का करम ही माना जाता है कि मखमली चादरें तैयार करने में मुस्लिम सहित अनेक हिंदू परिवार भी शिद्दत से जुड़े हुए हैं।

200 दुकानों पर चादर का कारोबार

शहर में मजार शरीफ पर चढऩे वाली चादरें तैयार करने के कारोबार से जुड़ी लगभग 200 दुकानें हैं। कपड़े और कारीगरी के लिहाज से 51 रुपए से लेकर हजारों रुपए तक की चादर बाजार में उपलब्ध हैं। आम दिनों में अमूमन 400-500 चादरें मजार शरीफ पर चढ़ाई जाती हैं। लेकिन सालाना उर्स के दौरान चादरों की संख्या तीन से पांच हजार रोज तक पहुंच जाती है। कीमत के हिसाब से चादर की लंबाई ढाई मीटर से 42 मीटर तक होती है।

चादर बनाते हैं हिन्दू कारीगर ख्वाजा साहब के मजार पर चढऩे वाली चादरें बनाने व बेचने के कार्य से कई हिन्दू परिवार जुड़े हैं। करीब 42 साल से चादर कारोबार से जुड़े प्रदीप कुचेरिया ने बताया कि उनके यहां मजार पर चढऩे वाली चादर तैयार करने में कई हिंदू कारीगर भी लगे हुए हैं। इसी तरह दरगाह बाजार के व्यापारी राजेश जैन ने बताया कि अजमेर और अहमदाबाद में चादर बनाने के कार्य में विभिन्न धर्मों के लोग शामिल हैं।
ऐसे बनती है चादर
दरगाह में चढऩे वाली ये चादरें साटन, मखमल, वेलवेट के कपड़ों पर गोटा, कसीदा, जरदोजी के महीन काम से तैयार की जाती हैं। इनको बनाने में कुछ घंटों से लेकर महीनों तक का समय भी लग जाता है।
अजमेर से बाहर भी बनती है चादरें

ख्वाजा साहब की मजार शरीफ पर अब प्रिंटेड चादर चढ़ाने का भी चलन हो गया है। कम लागत और आकर्षक दिखने की वजह से अधिसंख्य जायरीन इन्हें ही खरीदते हैं। यह चादरें गुजरात के अहमदाबाद एवं सूरत से मंगवाई जाती हैं। इसके अलावा महीन कारीगरी वाली चादरें कोलकाता, हैदराबाद और मुंबई से विशेष तौर पर बनकर आती हैं। पहले यह काम हाथ से होता था, लेकिन अब सारा काम मशीनों से होता है।

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