अजमेर. एक बच्चे का जज्बा और हौसला देखिए, कोरोना में जब परिवार पर आर्थिक संकट छाया, वह साइकिल लेकर निकल पड़ा। आम जरूररत की चीजें बेचकर शाम तक कुछ पैसा हाथ लगा तो उसे राह मिल गई। अब वह रोजाना लगभग 20 किलोमीटर तक फेरी लगाता है। घर-घर जाता है, आम जरूरत की चीजें बेचकर माता-पिता का सहारा बन रहा है। यह बालक है अजमेर के नागफणी क्षेत्र का अरबाज । उसकी उम्र भले 15 साल का, मगर उसके मंसूबे, सोच और संजीदगी उम्र में बड़ों से भी बड़ी है। जानते हैं अरबाज की कहानी, उसी की जुबानी. . .स्कूल बंद होने से पिछले डेढ़ साल से स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। परिवार में खाने-पीने का संकट आ गया। परिवार में माता-पिता, दो भाई और दो बहिनें हैं। पिता अकेले मजदूरी व फेरी लगाकार कुछ कमाते हैं उससे गुजर-बसर चलता है लेकिन हम सभी पढ़ाई भी कर रहे हैं, स्कूल का खर्चा भी है। लाइट-पानी का खर्च खाने-पीने से भी अधिक हो जाता है। ऐसे में पिता से बात करने के बाद मैंने भी इन छुट्टियों का सदुपयोग कर लिया. . . । बहन की साइकिल से ‘घर चालायाÓ. . . सरकारी स्कूल में पढऩे वाली अरबाज की बड़ी बहन को सरकार की ओर से मिली साइकिल कोरोना काल में अरबाज के परिवार को चलाने का जरिया बनी। बहन के स्कूल नहीं जाने से घर में अनुपयोगी खड़ी साइकिल पर सामान लादकर वह रोज सुबह निकलता है और घर-घर फेरी लगाकर बेचता है। अरबाज ने बताया कि हर घर में झाड़ू, पोंछे, वाइपर, ब्रश एवं घर में काम आने वाले सामान साइकिल के आगे-पीछे लगाकर बेचता है। इससे रोजाना 200-300 रुपए की कमाई हो जाती है। भाई-बहन शाम को एकसाथ करते हैं पढ़ाई अरबाज ने बताया कि शाम को चारों भाई-बहन साथ बैठकर पढ़ते भी हैं। पढ़ाई भी करनी है। लम्बे समय से स्कूल बंद हैं, ऐसे में पढ़ाई किसी तरह तो करनी ही पड़ेगी। कोरोना का डर भी सताता हैउसने बताया कि घर में भी सब कोरोना संक्रमण से डरते हैं, हम भी ध्यान रखते हैं। लेकिन अब कोरोना का असर कम हुआ है। दोपहर 4 बजे तक कॉलोनियों में जाकर फेरी लगाता हूं। कम उम्र का देखकर महिलाएं भी सामान उसी से लेने को प्राथमिकता देती हैं।