ईश्वर की भक्ति करने से व्यक्ति का मोह घटता है। बड़े-बड़े तप करने से दुख भले नष्ट नहीं हो लेकिन भक्ति से स्वत: ही विलीन हो जाते हैं। यह विचार आचार्य वसुनन्दी ने धर्म सभा में कही।
उन्होंने कहा कि संसार में भक्ति ही सर्वोत्तम है। बिना भक्ति के समस्त तप साधना व्यर्थ है। मोक्ष रूपी महल के कपाट की चाबी भक्ति है। जो दरवाजे हाथियों के माध्यम से भी ना खुलें वह भक्ति रूपी छोटी सी चाबी से खुल जाते हैं। भगवान के दर्शन करना तभी सार्थक है जब आपको आत्मस्वरूप के दर्शन हो जाएं।
ज्यों-ज्यों परमात्मा व गुरूओं से राग बढ़ेगा त्यों-त्यों घर परिवार, संसार के भोग से विरक्ति होगी। विषय और कषाय रूपी चिकनाहट से पैर फिसलता है। दुर्लभ मोक्ष मार्ग अंधकार से आवृत्त है। उसे कोई भी व्यक्ति सुखदपूर्वक पार नहीं कर सकता है। भगवान की वाणी रूपी ज्ञान को बढ़ाया जाए तो दुरूह मार्ग सुगमता से पार हो जाता है। इससे पूर्व मंगलाचरण दिगम्बर जैन स्कूल के बच्चों ने किया।
लो मानसून तो हुआ नदारद, अब छाया हड़ताल का मौसम वाजिब हक, मुद्दों के लिए सरकारी कर्मचारी-अफसर बरसों से हड़ताल और आंदोलन करते आए हैं। अनिश्तिकालीन धरना-पैन डाउन, प्रदर्शन जैसी गांधीगिरी दफ्तरों में कई मर्तबा दिखती रही है। तभी सरकार का ध्यान कार्मिकों की समस्या पर जाता है। मानसून तो राजस्थान में कुछ दिनों का मेहमान है। पर फिलहाल प्रदेश में हड़ताल-आंदोलन का मौसम चल रहा है।
बे-बस मुसाफिर
प्रदेश के खजाने भरने वाली रोडवेज के पहिए दस दिन से थमे हुए हैं। मुसाफिर हैरान-परेशान हैं। निजी संचालक उनकी जेब खाली कराने में जुटे हैं। घाटे से जूझते रोडवेज की तरफ शायद सरकार देखना भी नहीं चाहती। मंत्री-अफसर भी कर्मचारियों से वापस काम पर लौटने की अपील को एकमात्र समाधान समझे बैठे हैं। समस्या की जड़ तक पहुंचने की कोशिश नहीं हो रही। सबसे बड़ी भर्ती संस्था राजस्थान लोक सेवा आयोग भी ठप है। दूसरे महकमों की पदोन्नति, भर्तियां करने वाले आयोग के अपने हाल खराब हैं। यहां कर्मचारियों के साथ अफसर भी सामूहिक अवकाश पर हैं। पिछले दिनों परिवहन निरीक्षक, आरएएस अफसर भी नाराजगी जता चुके हैं।
प्रदेश के खजाने भरने वाली रोडवेज के पहिए दस दिन से थमे हुए हैं। मुसाफिर हैरान-परेशान हैं। निजी संचालक उनकी जेब खाली कराने में जुटे हैं। घाटे से जूझते रोडवेज की तरफ शायद सरकार देखना भी नहीं चाहती। मंत्री-अफसर भी कर्मचारियों से वापस काम पर लौटने की अपील को एकमात्र समाधान समझे बैठे हैं। समस्या की जड़ तक पहुंचने की कोशिश नहीं हो रही। सबसे बड़ी भर्ती संस्था राजस्थान लोक सेवा आयोग भी ठप है। दूसरे महकमों की पदोन्नति, भर्तियां करने वाले आयोग के अपने हाल खराब हैं। यहां कर्मचारियों के साथ अफसर भी सामूहिक अवकाश पर हैं। पिछले दिनों परिवहन निरीक्षक, आरएएस अफसर भी नाराजगी जता चुके हैं।
ठोका हड़ताल का खम्भ
सरकारी दफ्तरों के मंत्रालयिक कर्मचारियों ने भी हड़ताल का खम्भ ठोक रखा है। कहीं सातवें वेतनमान की विसंगतियां तो कहीं पदोन्नतियों-भर्तियों के मुद्दे हावी हैं। आंकड़ों के गणित से देखें तो करीब तीस हजार से ज्यादा सरकारी कर्मचारी-अधिकारी हड़ताल-धरने पर हैं।सरकार जनता के बीच जाकर पांच साल का हिसाब देने में व्यस्त है। पिछली सरकार को कोसते हुए प्रदेश में सडक़ों का जंजाल बिछाने, अस्पतालों में चिकित्सक-स्टाफ की भर्ती, सरकारी दफ्तरों, स्कूल-कॉलेज में पदोन्नतियां, नामांकन बढऩे, औद्योगिक निवेश, रोजगार सृजन और बेहतर जीवन स्तर के दावे किए जा रहे हैं। अगर सरकार के मुताबिक इतना सब हुआ है तो कर्मचारियों-अधिकारियों को नाराजगी समझ से परे है।
सरकारी दफ्तरों के मंत्रालयिक कर्मचारियों ने भी हड़ताल का खम्भ ठोक रखा है। कहीं सातवें वेतनमान की विसंगतियां तो कहीं पदोन्नतियों-भर्तियों के मुद्दे हावी हैं। आंकड़ों के गणित से देखें तो करीब तीस हजार से ज्यादा सरकारी कर्मचारी-अधिकारी हड़ताल-धरने पर हैं।सरकार जनता के बीच जाकर पांच साल का हिसाब देने में व्यस्त है। पिछली सरकार को कोसते हुए प्रदेश में सडक़ों का जंजाल बिछाने, अस्पतालों में चिकित्सक-स्टाफ की भर्ती, सरकारी दफ्तरों, स्कूल-कॉलेज में पदोन्नतियां, नामांकन बढऩे, औद्योगिक निवेश, रोजगार सृजन और बेहतर जीवन स्तर के दावे किए जा रहे हैं। अगर सरकार के मुताबिक इतना सब हुआ है तो कर्मचारियों-अधिकारियों को नाराजगी समझ से परे है।