
फिर डोली राजाखेड़ा में साहब की कुर्सी
राजाखेड़ा. खाकी पर खादी हमेशा से ही भारी पडऩे के आरोप लगते ही रहे है। खाकी की नियुक्ति से लेकर स्थानांतरण तक में खादी की भूमिकारही है लेकिन तीन ओर से उत्तरप्रदेश ओर मध्यप्रदेश की सीमा से घिरे जिले के संवेदनशील थाना राजाखेड़ा में पिछले 14 वर्ष में ही 20 थानाधिकारियों को बदलने के प्रकरण में खादी की दखलंदाजी हुई है या यहां नियुक्त थानाधिकारियों की योग्यता में इतनी कमी पाई गई है कि उन्हें एक से 10 माह के बीच मे ही हटाने को मजबूर होना पड़ा है । ऐसे में संवेदनशील थाने की व्यवस्थाओं पर सवाल उठना लाजिमी है कि किन कारणों से बार-बार थानाधिकारियों को बदलने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है ।
शनिवार को यंहा तैनात थानाधिकारी को मात्र & माह में ही स्थानांतरित कर दिया गया और गौरतलब तथ्य यह है कि अभी अगस्त माह भी पूरा नहीं हुआ और जनवरी से अब तक यहां से तीसरे थानाधिकारी को रिलीव कर दिया गया । इससे पहले जनवरी में रामकेश मीणा, इसके बाद हनुमान सहाय और अब नेकीराम को थानाधिकारी के पद से हटाया गया है।
क्या है हकीकत...
मई 2007 से मई 2021 तक कुल 14 वर्षों में राजाखेड़ा में 20 थानाधिकारियों को तैनात किया जा चुका है, जिनमें से मात्र 4 भाग्यवान ही एक वर्ष का कार्यकाल पूरा कर पाए है । बाकी 15 एक से दस माह के बीच ही बदल दिए गए । जिनमें से दो तो एक माह भी पूरा नहीं कर पाए । दो अन्य & माह ही इस कुर्सी पर बैठ पाए , दो पांच माह ,एक चार माह, एक सात माह, एक आठ माह ओर दो 10 माह ही यहां रूक सके।
संवेदनशील थाना में बड़ी चिंता ..
राजाखेड़ा थाना जिले के सबसे संवेदनशील थानों में गिना जाता है । भौगोलिक दृष्टि से यह थाना तीन ओर से उत्तरप्रदेश व मध्यप्रदेश सीमाओं से जुड़ा है । धौलपुर से जुड़ाव तो सिर्फ स्टेट हाईवे 2 आ से है बाकी क्षेत्र अन्तरराÓयीय सीमा से लगता है ।उपखंड उत्तरप्रदेश के अपराधियों की शरणस्थली बन चुका है, दर्जनों स्थान तो ऐसे में यहां से कुछ ही मिनट में राजस्थान की सीमा पार कर उत्तरप्रदेश में आ जा सकते है। ऐसे में बार बार जिम्मेदार अधिकारियों को बदलना खतरनाक होता जा रहा है ।
अवैध रेता उत्खनन भी बड़ा मुद्दा...
राजाखेड़ा उपखंड अवैध रेता उत्खनन का जिले का सबसे बड़ा केंद्र है। यहां आधा दर्जन घाटों से रेता उत्खनन होकर उत्तरप्रदेश के रास्ते भरतपुर तक पहुंचता है । ऐसे में थानाधिकारियों को बार -बार बदलना इससे भी जोड़कर देखा जा रहा है । यहां लंबे समय से चम्बल उत्खनन को रोकने के लिए अलग थाना बनाने की मांग उठ रही है वंहा ऐसे हालात इस गोरखधंधे को ओर भी मजबूत करते जा रहे है ।
मानते है पनिशमेंट..
थाना बार बार स्थांनानतरण के चलते योग्य अधिकारियों के मनोबल को भी खासा नुकसान पहुंचता है । उस थाने को अस्थिर मानकर आसानी से कोई अधिकारी यंहा तैनाती को भी तैयार नहीं होता है । उनका भी कहना होता है कि एक माह में थानाधिकारी अपने भौगोलिक क्षेत्र को पूरी तरह परख भी नहीं पाता, तब तक किसी न किसी आरोप के चलते या राजनीतिक कारणों से हटा देना उसके सर्विस रिकॉर्ड को खराब कर देता है। जिसमें उसका खुद का कतई दोष नहीं होता । इसके चलते ऐसे थानों में कोई अधिकारी आना ही नहीं चाहता। इसे अब पुलिस अधिकारियों के बीच यह पनिशमेंट थाने के रूप में कुख्यात हो चुका है।
Published on:
14 Aug 2021 01:48 am
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