ख्वाजा मोईनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह सदियों से सर्वपंथ समभाव का केंद्र बनी हुई है। यहां बादशाहों से लेकर फकीर तक हाजिरी देते हैं। लोग खाली झोली लेकर आते हैं। बाद में मुरादें पूरी होने पर हाजिरी देते हैं। यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। नए साल में गरीब नवाज के छह दिवसीय उर्स मनाया जाएगा। इसकी तैयारियां जल्द शुरू होंगी।
आठ सौ साल से सूफियत का पैगामभारत में सूफियत की शुरुआत ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती से मानी जाती है। ख्वाजा साहब 11 वीं सदी में अजमेर आए थे। ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में प्रतिवर्ष एक से छह रजब तक सालाना उर्स मनाया जाता है। यह सिलसिला पिछले 800 साल से जारी है। छह दिन का उर्स मनाने के पीछे यह तर्क है, कि ख्वाजा साहब छह दिन तक खुदा की इबादत में रहे थे। इस दौरान ही उन्होंने दुनिया से पर्दा लिया था।
पूरी होती हैं मुरादें
आम से खास तक आतें मुरादें लेकर ख्वाजा साहब की दरगाह में हजारों जायरीन मुरादें लेकर आते हैं। इनमें से कई मुरादें पूरी होने पर वापस शुकराना अदा करने आते हैं। दरगाह आने वाली खास शख्सियतों में मुगल बादशाह अकबर, जहांगीर, बेगम नूरजहां, शाहजहां, निजाम हैदराबाद और अन्य शामिल हैं। इनके अलावा आजादी के बाद देश के कई प्रधानमंत्री, केबिनेट और राज्यमंत्री, प्रदेशों के सीएम, मंत्री पाकिस्तान के पीएम, बांग्लादेश के पीएम और अन्य देशों के राजनेता आते रहे हैं। बादशाह शाहजहां की पत्नी ने दो पुत्रों अजमेर में जन्म दिया था। उनकी बेटियां रोशनआरा और जहांआरा ने अपने बालों से दरगाह में सफाई की थी।
आम से खास तक आतें मुरादें लेकर ख्वाजा साहब की दरगाह में हजारों जायरीन मुरादें लेकर आते हैं। इनमें से कई मुरादें पूरी होने पर वापस शुकराना अदा करने आते हैं। दरगाह आने वाली खास शख्सियतों में मुगल बादशाह अकबर, जहांगीर, बेगम नूरजहां, शाहजहां, निजाम हैदराबाद और अन्य शामिल हैं। इनके अलावा आजादी के बाद देश के कई प्रधानमंत्री, केबिनेट और राज्यमंत्री, प्रदेशों के सीएम, मंत्री पाकिस्तान के पीएम, बांग्लादेश के पीएम और अन्य देशों के राजनेता आते रहे हैं। बादशाह शाहजहां की पत्नी ने दो पुत्रों अजमेर में जन्म दिया था। उनकी बेटियां रोशनआरा और जहांआरा ने अपने बालों से दरगाह में सफाई की थी।
जन्नती दरवाजे पर बांधते अर्जियां ख्वाजा साहब की मजार के निकट ही जन्नती दरवाजा बना है। प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार इस दरवाजे से प्रवेश करने पर जन्नत नसीब होती है। यह दरवाजा ख्वाजा साहब के सालाना उर्स, ख्वाजा साहब के गुरू उस्मान हारूनी के उर्स, ईद और कुछ मौकों पर ही खुलता है। इस दरवाजे से प्रवेश करने के लिए जायरीन में जबरदस्त होड़ मचती है। दरवाजा बंद रहने की स्थिति में लोग अपनी दुख-तकलीफ या किसी विशेष प्रयोजन को अर्जियों में लिखकर यहां मन्नत का धागा बांधते हैं। ऐसी मान्यता है, कि ख्वाजा साहब उनकी अर्जियों को कबूल करते हैं। बाद में लोग शुकराने अदा करने और मन्नत का धागा खोलने वापस आते हैं।