जिलेभर में गणगौर का पर्व पारंपरिक तरीके से मनाया गया। इस दौरान कई जगह धूमधाम से ईसर-गणगौर की सवारी निकाली गईं। पीसांगन कस्बे में गढ़ परिसर से गाजे-बाजे व जयकारों के साथ ईसर-गणगौर की सवारी निकली।
प्राचीन गढ़ परिसर से सवारी बड़ाबास, सदर बाजार, बजरंग मार्केट होते हुए गणगौरी चौक पहुंची, जहां ईसर गणगौर को शिव मंदिर के सामने विराजमान किया गया। महिलाओं ने ईसर-गणगौर की पूजा अर्चना करते हुए अमर सुहाग की तो युवतियों ने सुयोग्य वर की कामना की। गणगौरी चौक में गणगौर का मेला भरा। शाम को महाआरती के बाद ईसर-गणगौर की सवारी वापस गढ़ के लिए रवाना हुई।
इसी तरह सरवाड़ में गणगौर की ऐतिहासिक सवारी पुराने नगर पालिका भवन से शाम 4 बजे ढ़ोल-बाजों के साथ शुरू हुई। सवारी सदर बाजार, बस स्टैंड, गुरूद्धारा, नाथ मौहल्ला, पुराना तहसील भवन व रानी कुंड के सामने से होती हुई गोपाल बाल वाटिका पहुंची, जहां महिलाओं ने ईसर-गौरी के दर्शन कर सुख-शांति व समृद्धि की कामना की।
READ MORE : दफ्तरों को अब नहीं होगी वेतन-टीए-मेडिकल के बजट की दरकार सवारी में साफा, अंगरखी, धोती से सजी ईसर व राजस्थानी चूंदड़ी व गोटा-किनारी के लहंगे से सजी गौरी की आकर्षक प्रतिमाओं को सिर पर लेकर महिलाएं चल रही थीं। रास्ते में जगह-जगह लोगों ने सवारी पर पुष्पवर्षा की।
यहां गणगौरी चौक में परंपरागत मेले का आयोजन हुआ। सवारी के दौरान नगर पालिका के राजस्व अधिकारी राधेगोविन्द मिश्र, घीसालाल माली, सत्यनारायण लखन आदि मौजूद रहे। सवारी के दौरान पुलिस-प्रशासन पूरी तरह से सतर्क दिखाई दिया। मेला चौक, दरगाह इलाका, नाथ मौहल्ला, बस स्टैंड सहित कस्बे के भीतर भी सभी संवेदनशील स्थानों पर पुलिस का पहरा बिठाया गया और बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया। अतिरिक्त पुलिस बल भी साथ चल रहा था। थाना प्रभारी गुमान सिंह निर्वाण जाप्ते के साथ मौजूद रहे।
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घरों में ईसर-गणगौर के चित्र बनाए गए एवं महिलाओं ने एकासन व्रत रखकर दोपहर में होली के दूसरे दिन स्थापित किए गए मिट्टी के पात्र में उगाए गए गेंहू व जौ के जुवारे रखकर ईसर-गौरी के चित्र पर कुमकुम-काजल और मेहंदी के टीके लगाए।
ईसर-गौरी को नए परिधानों व गहनों से अलंकृत कर गौर-गौर गोमती, ईसर पूजे पार्वती तथा भंवर म्हानै पूजण द्यो गणगौर आदि गीतों की स्वरलहरियां बिखेरते हुए पूजा की। महिलाओं ने शिव-पार्वती की कथा का वाचन भी किया।
गणगौर पूजा के पूर्व छोटी-छोटी बालिकाएं दूल्हा-दुल्हन के वेश में सजकर व गठजोड़े से बंधकर बाग-बगीचों में जाकर कलश में जल, हरी दोब, पुष्प लेकर आईं। महिलाएं मंगल गीत गाती हुई चल रही थीं।