पुष्कर । |धार्मिक नगरी पुष्कर में वैसे तो कई प्रकार की मिठाइयां बनाई व बेची जाती है लेकिन पाली का गुलाब हलवा, नागौर का चमचम, ब्यावर की तिलपट्टी, आबू रोड की रबड़ी, सांभर की फीणी, जोधपुर की मावा कचोरी, बीकानेर का रसगुल्ला व अलवर का लालमावा काफी बिकता है। इन सबसे ज्यादा यदि किसी मिठाई की खपत है तो वह है मालपुआ। इन रबड़ी के मालपुओं की भारत ही नहीं अपितु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर एक अलग ही पहचान है। यहां आने वाले विदेशी मेहमान भी इन मालपुओं के चटखारे लगाने में पीछे नहीं रहते। यही कारण है कि यहां रोजाना करीब दो क्विंटल मालपुए बिक जाते हैं। विदेशी अपनी भाषा में इन्हें ‘स्वीट चपाती’ कहते हैं।
यूपी की मलाई पूड़ी बनी पुष्कर के मालपुए
पुष्कर के प्रसिद्ध मालपुओं की पहचान उत्तर प्रदेश की मलाई पूड़ी से हुई। मालपुआ विक्रेता गिरिराज वैष्णव का कहना है कि ये असल में यूपी की मलाई पूड़ी ही हैं। उनके दादा शिव प्रसाद वैष्णव करीब 75 साल पहले फिरोजाबाद (यूपी) गए थे। वहां उन्होंने एक दुकान पर मलाई पूड़ी का स्वाद चखा। यह उन्हें इतनी पसंद आई कि वह फिरोजाबाद से मलाई पूड़ी बनाने वाले हलवाई को अपने साथ पुष्कर लेकर आ गए तथा अपनी दुकान पर मलाई पुड़ी बनानी शुरू कर दी थी। यही मलाई पूड़ी धीरे-धीरे रबड़ी के मालपुए बन गई।
पुरूषोत्तम मास में रहती ज्यादा मांग
वैष्णव ने बताया कि वर्तमान में पुष्कर की करीब 20 से अधिक दुकानों पर रबड़ी के मालपुए बनाए जा रहे हैं। प्रतिदिन औसतन डेढ़ सौ से दो सौ किलो मालपुओं की बिक्री हो जाती है। एकादशी, पूर्णिमा, अमावस्या सहित विशेष पर्व व मेले के दौरान इनकी मांग कई गुना बढ़ जाती है। पुरूषोत्तम मास में तो पूरे महीने मालपुओं की जबरदस्त मांग रहती है। इनकी खासियत यह है कि एक महीने तक खराब नहीं होते हैं।