अजमेर

805 साल में पहली बार देरी से चढ़ा उर्स का झंडा, आपस में यूं भिड़े कव्वाल, खादिम और पुलिस

भी रस्मों में करीब 1 घंटे की देरी हुई है। यह उर्स के इतिहास में पहली बार हुआ है।

अजमेरMar 15, 2018 / 07:11 am

raktim tiwari

late in flag hosting ceremony

अजमेर।
ख्वाजा गरीब नवाज के उर्स में पहली बार झंडा चढ़ाने में करीब 20 मिनट की देरी हुई। पहली बार ऐसा हुआ है कि दरगाह में रोशनी का डंका बजने के बाद उर्स का झंडा चढ़ाया गया। झंडा देरी से चढ़ाए जाने का मुख्य कारण पुलिस की ओर से खादिम और कव्वालों को रोका जाना बताया जा रहा है। प्रशासन की व्यवस्थाओं से नाखुश कव्वालों ने तीन बार कव्वालियां बीच में रोक दी।
वहीं खादिम अबरार अहमद के परिवार ने यह चेतावनी दे दी कि उन्हें आगे नहीं जाने दिया तो वे झंडे को यहीं सड़क पर ही गाड़ देंगे। उन्होंने दरगाह बाजार तक पहुंच चुके झंडे को फूल गली के नुक्कड़ तक वापस भी बुलाया था। आखिरकार पुलिस प्रशासन माना और कव्वाल व खादिम को दरगाह में प्रवेश दिया गया, तब जाकर झंडे की रस्म अदा की गई। खादिम अबरार अहमद के अनुसार सभी रस्मों में करीब 1 घंटे की देरी हुई है। यह उर्स के इतिहास में पहली बार हुआ है।
यह हुआ विवाद
इस बार पुलिस प्रशासन की ओर से भीड़ को नियंत्रित करने के लिए, लंगरखाना गली, नला बाजार और दरगाह बाजार में बेरिकेड्स लगाए गए थे। मुतवल्ली अबरार अहमद के परिवार से अब्दुल रुऊफ चिश्ती, अब्दुल मारूफ चिश्ती आदि झंडे की रस्म अदा करने लंगरखाना गली से गरीब नवाज गेस्ट हाउस जा रहे लेकिन उन्हें रोक लिया गया। इस बात को लेकर उनकी पुलिसकर्मियों से बहस हो गई।
गेस्ट हाउस से झंडे का जुलूस रवाना होने के बाद पुलिस झंडे के आगे निकलते ही शेष सभी को रोक दिया। इस कारण कव्वाल और खादिम भी आम जायरीन के साथ ही पीछे रह गए। कव्वाल अख्तर हुसैन के अनुसार पुलिस ने यह कहकर रोक दिया कि उनके पास कोई आदेश नहीं है। अबरार अहमद ने बताया कि उनके परिवार के लोगों को भी यही कह कर रोक दिया। जैसे-तैसे वे फूल गली के नुक्कड़ तक पहुंच गए लेकिन वहां से आगे नहीं जाने दिया गया। इस कारण कव्वालियां बीच में रोकनी पड़ी और झंडे को वापस बुलाना पड़ा।
यह टूटी परम्परा
-मौरूसी अमले के अनुसार उर्स का झंडा रोशनी से पांच मिनट पहले चढ़ाए जाने की परम्परा रही है। इस बार रोशनी होने के 10 मिनट बाद झंडा चढ़ाया गया।

-कव्वालों के अनुसार वे झंडे के साथ कलाम पेश करते हुए चलते हैं और आस्ताना तक जाते हैं। इस बार रोशनी होने के कारण उन्हें बुलंद दरवाजे से पहले ही कव्वालियां रोकनी पड़ी और बिना कलाम पेश किए ही आस्ताना तक गए। वहां गौरी परिवार के सदस्यों ने फूल-चादर पेश की।
सीओ दरगाह ओमप्रकाश से सवाल-जवाब

सवाल- उर्स का झंडा चढ़ाने में देरी क्यों हुई?
जवाब- झंडे के जुलूस में शामिल कव्वाल पीछे रह गए थे, तो उन्होंने झंडे वालों से नाराजगी जाहिर की थी। नमाज से पहले झंडा चढ़ गया।
सवाल- क्या पुलिस ने कव्वालों को रोका?
जवाब- पुलिस ने कव्वालों को नहीं रोका। बैरिकेड्स आमजन के लिए लगाए गए थे। जुलूस में कव्वाल पीछे रह गए।

सवाल- खादिमों से बहस क्यों हुई?
जवाब- खादिमों से कोई बहस नहीं हुई। जुलूस में आगे पीछे होना कव्वाल और खादिमों के बीच आपसी मामला था।
मौरूसी अमला हुआ तैयार

मौरूसी अमले ने इस बार झंडे की रस्म के दौरान रहने वाले सदस्यों की सूची दरगाह कमेटी को नहीं दी। इसके बावजूद दरगाह कमेटी ने पुरानी सूची के अनुसार 35 सदस्यों को रस्म में शामिल होने की इजाजत दे दी। इस पर मौरूसी अमले ने इन्कार नहीं किया और रस्में निभाई। इस संबंध में मुजफ्फर भारती का कहना है कि पुलिस ने पहले यह कह दिया था कि वे गौरी परिवार के सदस्यों से ही झंडा चढ़वा लेंगे। इस बात को लेकर हमनें दरगाह कमेटी को सूची उपलब्ध नहीं कराई थी।
चप्पे-चप्पे पर जायरीनअजमेर और आस-पास के गांवों से आए अकीदतमंद ने दरगाह परिसर और दरगाह क्षेत्र के विभिन्न मकान-गेस्ट हाउस की छत व बरामदों में काफी देर पहले ही अपनी जगह बना ली थी। जहां से भी झंडे का जुलूस या बुलंद दरवाजा नजर आ रहा था वहां अकीदतमंद नजर आए।
खिदमत का समय बदला

ख्वाजा साहब की दरगाह में रोजाना होने वाली खिदमत का समय भी बदल गया है। अंजुमन सचिव वाहिद हुसैन अंगारा शाह ने बताया कि अपराह्न 3 बजे होने वाली खिदमत का समय अब रात 8.30 बजे का रहेगा। रजब की पांच तारीख तक खिदमत रात में ही होगी। इस दौरान आस्ताना दिनभर जायरीन के लिए खुला रहेगा। जन्नती दरवाजा 18 मार्च को खोल दिया जाएगा। इस दिन चांद दिखाई नहीं दिया तो रात को जन्नती दरवाजा बंद कर अगली सुबह फिर से खोला जाएगा जो कुल की रस्म तक खुला रहेगा। झंडे का इतिहासमुतवल्ली अबरार अहमद ने बताया कि वर्ष 1923 से उनके परदादा निसार अहमद खुद झंडा चढ़ाया करते थे, बाद में 1927 में पेशावर के सत्तार बादशाह ने इस कार्य की इजाजत उनसे मांगी। वर्ष 1944 से भीलवाड़ा के लाल मोहम्मद गौरी का परिवार झंडा चढ़ा रहा है।

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