कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अजमेर दरगाह (ajmer dargah) के दीवान (diwan) सैयद जैनुअल आबेदीन के पुत्र सैयद नसीरूद्दीन चिश्ती ने कहा कि राष्ट्र निर्माण के लिए युवा पीढ़ी को आगे आना होगा। देश तभी सुरक्षित रहेगा जब तक देश में प्रेम वह भाईचारे की भावना रहेगी। भारत की अखंडता की सबसे बड़ी शक्ति एकता ही है। इसलिए हमें भारतीय के तौर पर एकजुट रहना होगा। उन्होंने कश्मीर के हालात पर चर्चा करते हुए कहा कि धारा 370 (article 370) को धार्मिक नज़रिए से न देखा जाए। न ही इसको राजनीतिक रंग दिया जाए। यह एक राष्ट्र हित का मामला है जिसमें हर भारतीय का एक मत होना चाहिए। उन्होंने युवाओ से अपील की कि वो सोशल मीडिया पर चलने वाली हर खबर को सच न मानें बल्कि पहले उसकी तहक़ीक़ करें और फिर आगे बढ़ाएं।
READ MORE: दरगाह दीवान को पाकिस्तानियों से मिली धमकी, एक ने कहा अब अमरीका सोच समझकर आना नसीरूद्दीन ने कहा कि अपने वतन से मोहब्बत की भावना स्वाभाविक है क्योंकि इंसान जहां जन्म लेता है, जहां चलना और बोलना सीखता है, जहां की मिट्टी से उपजे अन्न-जल को खाकर बड़ा होता है, जहां उसके सगे-संबंधी, नाते-रिश्तेदार, मित्र होतें हैं, जहां की मिट्टी और आबो-हवा में उसके पूर्वजों की यादें बसी होती है, उस भूमि से उसे भावात्मक लगाव हो जाता है।
वतन से मोहब्बत का ये पाक जज्बा इंसान तो इंसान परिंदों तक में पाया जाता है। कोई परिंदा बेशक किसी खास मौसम में आश्रय की तलाश में कहीं और चला जाता है पर कुछ वक्त बाद वो भी अपने वतन लौट जाता है। चिश्ती ने कहा कि वतन से हमारा ताअल्लुक का सबसे बड़ा सबूत है कि हमारी पहचान इससे जुड़ी हुई है, जिसका पता तब चलता है जब हम कहीं बाहर जातें हैं। वहां दुनिया हमें हिंदू, मुस्लिम, सिख इन नामों से नहीं पहचानती बल्कि हमारी पहचान का आधार वहां हिंदुस्तानी होना होता है। यहां तक कि हज और उमरा करने जाने वाले भारतीय मुसलमानों को वहां के अरब हिंदी कहकर पुकारतें हैं।
वतन से मोहब्बत का ये पाक जज्बा इंसान तो इंसान परिंदों तक में पाया जाता है। कोई परिंदा बेशक किसी खास मौसम में आश्रय की तलाश में कहीं और चला जाता है पर कुछ वक्त बाद वो भी अपने वतन लौट जाता है। चिश्ती ने कहा कि वतन से हमारा ताअल्लुक का सबसे बड़ा सबूत है कि हमारी पहचान इससे जुड़ी हुई है, जिसका पता तब चलता है जब हम कहीं बाहर जातें हैं। वहां दुनिया हमें हिंदू, मुस्लिम, सिख इन नामों से नहीं पहचानती बल्कि हमारी पहचान का आधार वहां हिंदुस्तानी होना होता है। यहां तक कि हज और उमरा करने जाने वाले भारतीय मुसलमानों को वहां के अरब हिंदी कहकर पुकारतें हैं।