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खतरनाक जलते पटाखे एक दूसरे पर फेंकने की कुप्रथा
हालांकि बीते कुछ सालों में इस सवारी के दौरान खतरनाक जलते पटाखे एक दूसरे पर फेंकने की कुप्रथा भी शुरू हो गई। जिसमें कई जने हर साल झुलसते हैं। पटाखे फेंकने की कुप्रथा को रोकने के लिए प्रशासन मुस्तैदी भी दिखाता है और हर साल पुलिस व प्रशासनिक अधिकारी बड़े बड़े दावे भी करते हैं। प्रशासन द्वारा क्षेत्र में गंगा जमुना, सीता गीता नामक खतरनाक पटाखे बेचने तथा जलाने पर प्रतिबंध लगाया जाता है, जो इस बार भी लगाया गया है। मगर फिर भी ये पटाखे बड़ी मात्रा में यहां बेचे जाते हैं, जिससे उद्दंडी युवक घास भैरू की सवारी के दौरान ये खतरनाक जलते हुए पटाखे एक दूसरे पर फेंकते है। इसे नया नाम अंगारों की होली का भी दे दिया गया है। पहले घास भैरू के आगे आतिशबाजी की जाती थी। धीरे-धीरे लोग एक-दूसरे पर पटाखे फेंकने लगे। इस खतरनाक खेल में लोगों को इसकी बिल्कुल परवाह नहीं रहती कि उनके द्वारा फेंके गए जलते हुए पटाखे से जनहानि भी हो सकती है।
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सवारी निकालने की परंपरा 100 वर्ष से भी अधिक पुरानी
बताया जाता है कि घास भैरू की सवारी निकालने की परंपरा 100 वर्ष से अधिक पुरानी है। शहर के गणेश प्याऊ के समीप घास भैरू का शिलाखंड स्थापित हैं। यहीं से यह सवारी शुरू होती है, जो पुराने शहर में घूमती हुई वापस देर रात तक गणेश प्याऊ के समीप पहुंचती है। पहले घास भैरू के इस शिलाखंड को बैलों द्वारा खींचा जाता था, मगर बदलते वक्त के साथ परिस्थितियां भी बदल गईं। अब बैल नहीं मिलते तो लोग सवारी को अपने हाथों से खींचते हैं। पिछले ढाई दशक से इस परंपरा का रूप बदरंग होता चला गया। घास भैरव की सवारी में लोग एक-दूसरे पर जलते पटाखे फेंकते हैं। अंगारों का यह खेल रात के अंधेरे में होता है। घास भैरव की सवारी में अब शहर के लोग ही नहीं बल्कि आस-पास क्षेत्र के ग्रामीण भी बड़ी संख्या में भाग लेने लगे हैं। इस कारण लोगों की संख्या भी काफी रहती हैं।