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अजमेर

दत्तक गए दो ‘चिरागों’ की दुनिया में फिर से अंधकार… परिवारों ने बिसराया

ह्युमन एंगल : पुलिस अधिकारी व शहर के कारोबारी ने सीडब्लूसी सदर को लिखे पत्र

अजमेरAug 06, 2024 / 03:04 am

manish Singh

दत्तक गए दो ‘चिरागों’ की दुनिया में फिर से अंधकार. . .परिवारों ने बिसराया

मनीष कुमार सिंह
Ajmer News. अपनों के ठुकराने के बाद एडॉप्शन के जरिये दो परिवारों के ‘चिराग’ बने मासूम फिर से अंधेरी दुनिया की देहरी पर खड़े हो गए हैं। पहले तो जन्म के साथ ही जननी ने अलग कर दिया, लेकिन जिसने पालन-पोषण कर अपनी पहचान दी वह भी अब उनसे नाता तोड़ने की तैयारी में हैं।
मामला दत्तक ग्रहण केन्द्र से गोद लिए दो बच्चों से जुड़ा है। जहां से बेटी की चाहत में पुलिस अफसर ने 15 साल पहले बालिका को गोद लिया। वहीं शहर के एक कारोबारी ने तीन पुत्रियों के जन्म के बाद बेटे की चाह में लड़का गोद लिया। दोनों ही परिवारों ने पढ़ा-लिखाकर परवरिश तो की लेकिन ज़हन से ‘गोद लेने’ की सोच को सालों बाद भी नहीं निकाल सके। पन्द्रह साल की बालिका जहां पुलिस अफसर पिता से दूर अनाथालय पहुंच गई। वहीं 17 वर्षीय बालक एक ही छत के नीचे रहकर भी पिता से ‘बेगाना’ हो चला है।

केस-1: हादसे का दोष मढ़ा, कमियां गिनाईं

अजमेर रेंज के एक जिले में तैनात पुलिस अधिकारी ने 15 साल पहले अनाथालय से बालिका को गोद लेकर पिता की छांव दी लेकिन कोख से जन्मे पुत्र के आगे उनकी पत्नी मां दत्तक पुत्री पर ममता नहीं लुटा सकी। पति के साथ पेश आई सड़क दुर्घटना का दोष मासूम पर लगाया तो वह बिना बताए घर से निकल गई। पिता-बड़ा भाई लेने पहुंचे लेकिन साथ जाने से इनकार पर उसे बालिका गृह भेज दिया गया। वह फिर से लौटना चाहती है लेकिन माता-पिता सीडब्ल्यूसी अध्यक्ष को पत्र लिखकर उसे पुन: समर्पित(अभ्यर्पित) करने की मंशा जता चुके हैं।

…नहीं रहा लगाव, खामियां गिनाईं

पुलिस अधिकारी और उनकी पत्नी ने बालिका को समर्पित करने के लिखे पत्र में उसकी ढेरों खामियां गिना दी। उन्होंने परिवार में तनाव और बिखराव के हालात बताकर भावनात्मक लगाव खत्म होने की बात कही।

केस-2: ‘मां’ की मौत से उजड़ी दुनिया

शहर के एक व्यवसायी ने तीन पुत्रियों के बाद पत्नी के चाहने पर पुत्र को गोद लिया। मां के रहते लालन-पालन में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। लेकिन मां की बीमारी से मौत के बाद उसकी भी दुनिया उजड़ गई। नाते-रिश्तेदारों ने उसे मौत का कारण बता ‘अनाथ’ होने का दोबारा एहसास करा दिया। वह घर में है जरूर, लेकिन बेगानों की तरह बसर कर रहा है। उसकी पढ़ाई भी छुड़वा दी गई।

खाने के मिलते हैं 50 रुपए

पड़ताल मे आया कि आवेश में किशोर ने स्वयं को जख्मी कर लिया। उसके हाथ में फ्रेक्चर है। वह अपने पिता के साथ रहता तो है लेकिन खाना इन्दिरा रसोई, कभी होटल, ढाबे पर खाता है। जबकि पिता के लिए रोजाना दादी खाना भेजती है। पिता से उसे सुबह-शाम के खाने के 50-50 रुपए मिलते हैं।

इनका कहना है…

दत्तक ग्रहण केन्द्र से गोद दिए दो बच्चों के केस सामने आए हैं। किशोरावस्था में बच्चों को देखभाल की ज्यादा जरूरत होती है। उन्हें समझाइश व प्यार की जगह दूर किया जाना गलत है। ‘कारा’ द्वारा बच्चे सिर्फ नि:संतान दंपती को ही दिए जाने चाहिएं। ताकि उनकी अच्छी केयर हो सके। दोनों प्रकरण में काउंसलिंग की जा रही है।

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