उन्होंने कहा कि राजस्थान में नम भूमि के कई क्षेत्र हैं। इनमें केवलादेव और सांभर झील प्रमुख है। यहां पक्षियों की बहुतायत है और उन्हें बचाना जरूरी है। नम भूमि में जलीय जैव विविधता प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। अंधाधुंध विकास और प्रदूषण के चलते नम भूमि खत्म हो रही है। इससे जीवों की प्रजातियां खतरे में हैं। हमें इन्हें बचाने के गंभीर प्रयास करने होंगे।
प्रत्येक जीव की अहमियत बीएनएचएस मुंबई के डॉ. सुजीत नरवड़े ने कहा कि प्रकृति में प्रत्येक जीव की अहमियत है। इन्हें नकारा नहीं जा सकता। उन्होंने उत्तराखंड और अन्य जगह की प्राकृतिक त्रासदियों जिक्र करते हुए कहा कि यह मानव की गलतियों का परिणाम हैं। हमें प्रकृति के व्यवहार को समझकर आने वाली पीढिय़ों के सुरक्षित जीवन के बारे में सोचने की जरूरत है।
कृषि और उद्योग हैं खतरा
महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय बीकानेर के पूर्व कुलपति प्रो. गंगाराम जाखड़ ने कहा कि कृषि व उद्योग नमभूमि के लिए खतरा हैं। इन क्षेत्रों से कीटनाशकों व रसायनों का उत्सर्जन होता है। इससे नम भूमि में रहने वाले जलीय जीव को भोजन उपलब्धता में परेशानी होती है। भविष्य में पानी की कमी मुख्य समस्या बनेगी। ऐसे में पानी के स्त्रोतों को बचाना अति आवश्यक है। इस दौरान मानसी जादौन, चंचल शर्मा ने आनासागर-फायसागर के संरक्षण से जुड़ी रिपोर्ट पेश की। डॉ. विवेक शर्मा, डॉ. अश्विनी कुमार, डॉ. रूचिरा भारद्वाज, डॉ. संगीता पाटन, दिवाकर यादव और अन्य मौजूद रहे। उमेश दत्त ने धन्यवाद दिया।