अजमेर (ब्यावर). ब्यावर स्थित शूलब्रेड मेमोरियल चर्च(Shulbread Memorial Church) राजस्थान का पहला व ऐतिहासिक चर्च (First and Historical Church of Rajasthan) है। इसे मदर चर्च भी कहा जाता है। तीन मार्च 1860 को टेकरी (पहाड़ी) पर चर्च की नींव रखी। इसकी विशेषता यह है कि निर्माण इस तरह किया कि इसमें लगाई गई पट्टियां अंदर से एक दूसरे से लॉक हो रखी है। इनके आधार के लिए कहीं भी पोल का निर्माण नहीं हुआ है। इस निर्माण को प्रभु यीशु (Lord Jesus) की जन्मस्थली यरूशलम में बनाए गए चर्च के समान ही स्वरूप दिया गया। यहीं से प्रदेश में मसीह समाज का विस्तार शुरू हुआ। इसमें पुराना घडिय़ाल व घंटाघर (ghantaaghar)भी है। कहते हैं इनकी आवाज पहले मीलों सुनाई देती थी।
…ताकि रहे हेरिटेज लुक
19 मई 2010 को चर्च ने अपनी 150 वीं जयंती (150th birth anniversary) मनाई थी। 150 वर्ष पूर्ण होने पर आयोजित समारोह में करीब नौ साल पहले चर्च पर गुलाबी रंग कर दिया गया था, जिसे अब हटाकर फिर से पुराना स्वरूप दिया गया है। सचिव सुनील लॉयल ने बताया कि इस रंग को हटाकर फिर से नेचुरल लुक दिया गया है।
19 मई 2010 को चर्च ने अपनी 150 वीं जयंती (150th birth anniversary) मनाई थी। 150 वर्ष पूर्ण होने पर आयोजित समारोह में करीब नौ साल पहले चर्च पर गुलाबी रंग कर दिया गया था, जिसे अब हटाकर फिर से पुराना स्वरूप दिया गया है। सचिव सुनील लॉयल ने बताया कि इस रंग को हटाकर फिर से नेचुरल लुक दिया गया है।
Watch More: Christmas festival starts : चर्च में स्कूल के बच्चों ने दी मोहक प्रस्तुतियां इतिहास के पन्नों से स्कॉटलैण्ड के दो पादरी रेव्ह. स्टील व रेव्ह. विलियम शूलब्रेड ईशु मसीह के संदेशों को पहुंचाने के लिए मुम्बई के लिए रवाना हुए।1858 में जहाज से मुम्बई बंदरगाह उतरे। यहां उदयपुर के महाराणाओं ने उनकी मदद की। दोनों ने यात्रा बैलगाड़ी से शुरू की। खेराड़ी शिवगंज (आबूरोड)10 फरवरी 1859 को लीवर अबसीस के कारण रेव्ह. स्टील की मृत्यु हो गई। यहां से डॉ. विल्सन के साथ रेव्ह शूलबे्रड ने आगे की यात्रा शुरू की। 3 मार्च 1859 को रेव्ह. विलियम शूलब्रेड रेलवे स्टेशन स्थित खारचिया पहुंचे। यहीं से 1859 में मिशनरी की शुरुआत हुई। रेव्ह. विलियम शूलब्रेड को 1879 में एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से डीडी की उपाधि मिली।
12 साल में तैयार रेव्ह. विलियम शूलब्रेड ने 3 मार्च 1860 को पहाड़ी पर चर्च की नींव रखी। 12 साल बाद 1872 में चर्च बनकर तैयार हुआ। यहां के बाद टॉडगढ़ चर्च का निर्माण हुआ।
घडिय़ाल व घंटाघर
प्रदेश के पहले मदर चर्च में लगा 18 मण का पीतल का घंटा 1871 में लंदन से मंगवाया। यह आज भी अपनी विरासत को संजोए है। चर्च की सबसे ऊपरी इमारत पर लगाया गया है। इतना विशाल घंटा महज दो लकडिय़ों के सहारे है। लंदन के जॉन मोर एंड संस से 1873 में पीतल का घडियाल मंगवाया गया था। यह 12 मण का है। कहते हैं इन दोनों की आवाज शहर के चारों कोनों में सुनाई देती थी।
प्रदेश के पहले मदर चर्च में लगा 18 मण का पीतल का घंटा 1871 में लंदन से मंगवाया। यह आज भी अपनी विरासत को संजोए है। चर्च की सबसे ऊपरी इमारत पर लगाया गया है। इतना विशाल घंटा महज दो लकडिय़ों के सहारे है। लंदन के जॉन मोर एंड संस से 1873 में पीतल का घडियाल मंगवाया गया था। यह 12 मण का है। कहते हैं इन दोनों की आवाज शहर के चारों कोनों में सुनाई देती थी।