प्राइवेट स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों की ओर से अभिभावकों को पैर, कंधों एवं पीठ में दर्द की शिकायतें मिलने के बाद कुछ जागरूक अभिभावकों ने भी अपने बच्चों की कक्षाओं का अवलोकन किया। इसके तहत पाया गया कि कक्षा एक से छठीं तक पढऩे वाले बच्चों की कक्षाएं दूसरी से तीसरी मंजिल पर संचालित हो रही हैं। इस संबंध में पत्रिका की ओर से भी कुछ प्राइवेट स्कूलों में पड़ताल की तो सामने आया कि जो बच्चे छोटी कक्षाओं में पढ़ रहे हैं, उनकी कक्षाएं भी प्रथम व द्वितीय मंजिल पर बने कमरों में संचालित हो रही हैं। कक्षा पहली से पांचवीं में पढऩे वाले बच्चों ने बताया कि वे अपना बस्ता लेकर सीढिय़ां चढकऱ अपने क्लास रूम में पहुंचते हैं।
न लिफ्ट न कोई बस्ता ले जाने की व्यवस्था शहर की कुछ प्राइवेट स्कूलों में छोटे बच्चों को दूसरी व तीसरी मंजिल तक लाने-ले जाने के लिए कोई लिफ्ट की सुविधा नहीं है। न ही कोई गार्ड या कर्मचारी बीमार या कमजोर बच्चों के बस्ते को कमरे तक पहुंचाने के लिए लगाया गया है। छोटे बच्चों की ओर से स्कूल प्रशासन की तो शिकायत नहीं दी गई मगर जब पेरेन्ट्स मीटिंग के लिए आमंत्रित किया जाता है तो कुछ ने इस समस्या से अवगत भी करवाया मगर किसी ने समाधान नहीं किया।
कैसे होगा बस्ते का बोझ कम!
शिक्षा मंत्री गोविन्दसिंह डोटासरा ने बस्ते के बोझ कम करने का प्लान तैयार कर लिया है मगर प्राइवेट स्कूलों की ओर से बस्ते के बोझ के साथ दूसरी व तीसरी मंजिल तक छोटे बच्चों पर अतिरिक्त बोझ की समस्या का समाधान नहीं खोजा गया है।
‘ग्राउंड फ्लोर पर ही हों कक्षाएं’ छोटे बच्चे अगर दो व तीन मंजिला स्कूल में लगातार सीढिय़ां चढकऱ क्लासरूम में जाते हैं तो बच्चों में घुटना का दर्द, कमर एवं पीठ दर्द गंभीर हो सकती है। यह बीमारी धीरे-धीरे बढ़ सकती है। छोटे बच्चों की कक्षाएं ग्राउंड फ्लोर पर ही होनी चाहिए।
-डॉ. हेमेश्वर हर्षवद्र्धन, अस्थि रोग विशेषज्ञ