उच्च, तकनीकी, प्रबंधन और अन्य संस्थानों के लिए लगातार दूसरी बार तय सीटें भरना आसान नहीं है। पिछले साल भी कई पाठ्यक्रमों सीट खाली रही थीं। दूसरे राज्यों के विद्यार्थियों ने रूचि नहीं ली थी। इस बार भी संस्थानों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं।
सरकारी और निजी इंजीनियरिंग कॉलेज में राजस्थान इंजीनियरिंग एडमिशन प्रोसेस (रीप) के तहत प्रवेश होते हैं। मैनेजमेंट कॉलेज-यूनिवर्सिटी में सीमेट परीक्षा और पॉलीटेक्निक कॉलेज में प्राविधिक शिक्षा मंडल जोधपुर प्रवेश देता है। इसी तरह उच्च शिक्षा विभाग के कॉलेज में संयुक्त प्रवेश नीति और विश्वविद्यालय अपने स्तर यूजी-पीजी पाठ्यक्रमों में दाखिले देते हैं।
इंजीनियरिंग कॉलेजों के हाल
कोरोना संक्रमण के चलते पिछले साल इंजीनियरिंग कॉलेज में जेईई मेन के अलावा बारहवीं उत्तीर्ण विद्यार्थियों को सीधे दाखिले देने पड़े थे। हालांकि पिछले चार-पांच साल से राज्य के कई इंजीनियरिंग कॉलेज में पर्याप्त सीट भरना चुनौती हो गई है। इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में युवाओं की घटती रुचि इसकी सबसे बड़ी वजह है। राज्य के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों 70 हजार से ज्यादा सीटें हैं। इनमें प्रतिवर्ष 15 से 20 हजार सीट खाली रहती हैं।
कोरोना संक्रमण के चलते पिछले साल इंजीनियरिंग कॉलेज में जेईई मेन के अलावा बारहवीं उत्तीर्ण विद्यार्थियों को सीधे दाखिले देने पड़े थे। हालांकि पिछले चार-पांच साल से राज्य के कई इंजीनियरिंग कॉलेज में पर्याप्त सीट भरना चुनौती हो गई है। इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों में युवाओं की घटती रुचि इसकी सबसे बड़ी वजह है। राज्य के सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों 70 हजार से ज्यादा सीटें हैं। इनमें प्रतिवर्ष 15 से 20 हजार सीट खाली रहती हैं।
मैनेजमेंट कोर्स भी बदहाल
राज्य के विभिन्न सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों, इंजीनियरिंग और प्रबंध संस्थानों में मैनेजमेंट कोर्स बदहाल हैं। अजमेर सहित कई जिलों के सरकारी और निजी कॉलेज में मैनेजमेंट कोर्स वेंटीलेटर पर हैं। किसी संस्थान में 120 तो किसी में 300 सीट हैं। लेकिन प्रतिवर्ष इनमें 60 फीसदी सीटें खाली रहती हैं।
राज्य के विभिन्न सरकारी और निजी विश्वविद्यालयों, इंजीनियरिंग और प्रबंध संस्थानों में मैनेजमेंट कोर्स बदहाल हैं। अजमेर सहित कई जिलों के सरकारी और निजी कॉलेज में मैनेजमेंट कोर्स वेंटीलेटर पर हैं। किसी संस्थान में 120 तो किसी में 300 सीट हैं। लेकिन प्रतिवर्ष इनमें 60 फीसदी सीटें खाली रहती हैं।
घट रह बाहरी राज्यों के विद्यार्थी
इंजीनियरिंग, मेडिकल और उच्च शिक्षण संस्थानों में दिल्ली उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, मध्यप्रदेश, केरल, कर्नाटक और अन्य राज्यों के विद्यार्थी भी एमबीए-बीबीए, बी.टेक,एमटेक और अन्य कोर्स में प्रवेश लेते हैं। इंजीनियरिंग कॉलेज में 15 प्रतिशत सीट दूसरे राज्यों के विद्यार्थियों के लिए आरक्षित होती हैं। मैनेजमेंट और पॉलीटेक्निक कॉलेज में भी 5 से 10 प्रतिशत सीटों पर अन्य राज्यों के विद्यार्थी प्रवेश लेते हैं। पिछले साल कोरोना संक्रमण के चलते दूसरे राज्यों के विद्यार्थियों ने ज्यादा प्रवेश नहीं लिए थेे। इस बार भी कोरोना संक्रमण से विद्यार्थी-परिजन आशंकित हैं।
इंजीनियरिंग, मेडिकल और उच्च शिक्षण संस्थानों में दिल्ली उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात, मध्यप्रदेश, केरल, कर्नाटक और अन्य राज्यों के विद्यार्थी भी एमबीए-बीबीए, बी.टेक,एमटेक और अन्य कोर्स में प्रवेश लेते हैं। इंजीनियरिंग कॉलेज में 15 प्रतिशत सीट दूसरे राज्यों के विद्यार्थियों के लिए आरक्षित होती हैं। मैनेजमेंट और पॉलीटेक्निक कॉलेज में भी 5 से 10 प्रतिशत सीटों पर अन्य राज्यों के विद्यार्थी प्रवेश लेते हैं। पिछले साल कोरोना संक्रमण के चलते दूसरे राज्यों के विद्यार्थियों ने ज्यादा प्रवेश नहीं लिए थेे। इस बार भी कोरोना संक्रमण से विद्यार्थी-परिजन आशंकित हैं।
यूं होते हैं प्रवेश
बारहवीं के बाद क्लैट, सीमेट, जेईई मेन, जेईई एडवांस, नीट और अन्य परीक्षाओं से आईआईटी, एनआईटी, इंजीनियरिंग, मेडिकल, प्रबंधन संस्थानों में प्रवेश होते हैं। इनमें 15 से 20 फीसदी सीट पर संबंधित गृह राज्य के विद्यार्थियों के दाखिले होते हैं। करीब 80 प्रतिशत सीट पर अलग-अलग प्रांतों के विद्यार्थियों को सीट अलॉट होती है। हालांकि उच्च शिक्षा विभाग से जुड़े कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के नियमित यूजी-पीजी पाठ्यक्रमों में सीटें भर जाती हैं। लेकिन इन संस्थानों के व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के हालात बहुत खराब हैं।
बारहवीं के बाद क्लैट, सीमेट, जेईई मेन, जेईई एडवांस, नीट और अन्य परीक्षाओं से आईआईटी, एनआईटी, इंजीनियरिंग, मेडिकल, प्रबंधन संस्थानों में प्रवेश होते हैं। इनमें 15 से 20 फीसदी सीट पर संबंधित गृह राज्य के विद्यार्थियों के दाखिले होते हैं। करीब 80 प्रतिशत सीट पर अलग-अलग प्रांतों के विद्यार्थियों को सीट अलॉट होती है। हालांकि उच्च शिक्षा विभाग से जुड़े कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के नियमित यूजी-पीजी पाठ्यक्रमों में सीटें भर जाती हैं। लेकिन इन संस्थानों के व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के हालात बहुत खराब हैं।
संस्थानों को होगा यह नुकसान
-सीट खाली रहने पर फीस कम आएगी संस्थानों में
-सरकारी अनुदान पर बनी रहेगी निर्भरता
-सेल्फ फाइनेंसिंग स्कीम वाले कॉलेज-विभाग को नुकसान
-हॉस्टल, लाइब्रेरी कक्षाओं में सेनेटाइजेशन पर बढ़ेगा खर्च कोर्स और फीस (सरकारी-निजी संस्थान)
बी.टेक कोर्स फीस (चार साल)-2 से 5 लाख रुपए
एम.टेक कोर्स फीस (दो साल)-71 से 90 हजार रुपए
एमबीए (दो साल)-77 हजार से 1.50 लाख तक
पॉलीटेक्निक कॉलेज: 35 हजार रुपए वार्षिक, कॉशन मनी-7500
-सीट खाली रहने पर फीस कम आएगी संस्थानों में
-सरकारी अनुदान पर बनी रहेगी निर्भरता
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बी.टेक कोर्स फीस (चार साल)-2 से 5 लाख रुपए
एम.टेक कोर्स फीस (दो साल)-71 से 90 हजार रुपए
एमबीए (दो साल)-77 हजार से 1.50 लाख तक
पॉलीटेक्निक कॉलेज: 35 हजार रुपए वार्षिक, कॉशन मनी-7500